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Nostalgic Territory of Bhadauria's

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सोनाली भदौरिया - एक यूट्यूब सितारे का जन्म

सोनाली भदौरिया एक लोकप्रिय डांसर, कोरियोग्राफर, YouTuber और इंटरनेट पर्सनैलिटी हैं, वो पुणे महाराष्ट्र की रहने वाली हैं। वह एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में आईटी कंपनी इंफोसिस लिमिटेड में काम कर रही थीं लेकिन डांसिंग के अपने जुनून में उन्होंने अपने करियर को YouTube पर डांसिंग ट्यूटोरियल वीडियो बनाने में स्थानांतरित कर दिया और इंफोसिस लिमिटेड में अपनी उच्च आय वाली नौकरी छोड़ दी। YouTube पर उन्हें अपार लोकप्रियता मिली। उनके YouTube चैनल को भारत में शीर्ष 10 सबसे लोकप्रिय महिला YouTubers में सूचीबद्ध किया गया है। वह अपने आकर्षक मोहिनी व्यक्तित्व और अनूठी नृत्य तकनीकों और कोरियोग्राफी कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं। YouTube पर उनके वीडियो देखने के बाद उनके अद्भुत कोरियोग्राफी कौशल की लोग सराहना करते हैं। उन्होंने भारत के सबसे लोकप्रिय डांसिंग टीवी शो, "डांस इंडिया डांस - बैटल ऑफ द चैंपियंस" में भी प्रदर्शन किया था। Youtuber Sonali Bhadauria सोनाली भदौरिया बचपन/प्रारंभिक जीवन सोनाली ने अपना पूरा बचपन पुणे में बिताया। वह बचपन से ही आकर्षक दिखती थी और उन्हें नृत्य, श्रृंगार, मॉडल के कपड़

भदावरी भैंस की पहचान

भदवारी एक उन्नत देशी भैंस नस्ल है, जिसे प्रमुख्ता से उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा जिलों और मध्य प्रदेश के भिंड और मुरैना जिलों में दूध उत्पादन के लिए पाला जाता है। डेरी व्यवसाय में देशी घी का महत्वपूर्ण स्थान  रहा है और देश में उपलब्ध  दूध की सर्वाधिक मात्रा देशी घी में परिवर्तित की जाती है। हमारे देश में भैसों की 12 नस्लों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व नस्ल पंजीकरण समिति द्वारा मान्यता प्राप्त है। भदावरी उनमें से महत्वपूर्ण नस्ल है, जो दूध की अत्याधिक वसा प्रतिशत के लिए प्रसिद्ध है। भदावरी भैंस के दूध में औसतन 8.0% वसा पाई जाती है जो देश में पाई जाने वाली भैंस की नस्लों से अधिक है। भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी में भदवारी भैंस संरक्षण एवं संर्वधन परियोजना के तहत रखी गयी  भैंसों के समूह में भदावरी भैंस के दूध में अधिकतम 11-12  प्रतिशत तक वसा पाई गई है। भदावरी भैंस को देश की सबसे अच्छी नस्ल है। यह देश की इकलौती देशी नस्ल है जिसके दूध में अधिकतम फैट होता है। Bhadawari buffalo भदावरी भैंस- पहचान एवं विशेषताएं भदवारी नस्ल के पशुओं में ग्रामीण क्षेत्रों में भदावरी, भूरी

भटुला : भदावर का मल्टीग्रेन ब्रेड

मोटे अनाज ही भदावर में खाये जाते थे जिन्हें कालान्तर में भुला दिया गया, अब दुनियाँ फिर इनकी तरफ लौट रही है  जई का इस्तेमाल भदावरवासी करते थे भटुला एक भदावरी मल्टीग्रेन ब्रेड (रोटी) थी अब कोई इसे नहीं खाता है, इसकी कहानी भी दिलचस्प है।   Multigrain Bread - Bhatula भदौरिया इस युग (लगभग सन 1640) में चम्बल के बीहड़ो में बसे हुए थे और जनता का खान-पान  मोटे अनाज ज्वर-बाजरा तक ही सीमित था अरहर, चना ,जई और मुंग से बनी रोटी को "भटुला" या गांकर कहा जाता था यह अपनी कठोरता के लिए कुप्रसिद्ध है, और जो लोग बेहतर अन्न उगाने व खरीदने में समर्थ थे  वे बिरले ही इसे खाते थे । ऐसा कहा जाता है की भटुला ही भदौरिया के उत्कर्ष का कारण रहा था ये कहानी अनर्गल व हास्यास्पद लगती है, लेकिन समीपत्व भदावर में सामान्यतः इस पर विश्वाश किया जाता है। भदावर महाराजा गोपाल सिंह, सम्राट मुहमद शाह से मिलने उनके दरबार में पहुचे, महाराजा की आंखें बहुत बड़ी बड़ी थी, इतनी बड़ी की सम्राट का भी ध्यान आकर्षित कर लिया, सम्राट ने पूछा की आपकी आंखें इतनी बड़ी कैसे हुई ? भदावर महाराजा ने अपने परिहस चातुरी का परिचय देते हुए, ज

भदावर गौरव गेंदालाल दीक्षित

आगरा की बाह तहसील के मई गांव में जन्मे भदावर गौरव गेंदालाल दीक्षित का जन्म 30 नवम्बर सन् 1888 ई० को हुआ। श्री गेंदालाल दीक्षित औरैया के दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक थे । वह 'बंगाल विभाजन' के विरोध में चल रहे बालगंगाधर तिलक के स्वदेशी आंदोलन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने पहले शिक्षित जनों ( गिन्दन गुट) का संघटन बनाने का प्रयास किया परन्तु उसमें सफल न हो सके। जब अंग्रेज प्रथम विश्व युद्ध में फंसे हुए थे, उसी दौरान गेंदालाल दीक्षित ने शिवजी समिति बना कर अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध सशस्त्र क्रांति शुरू कर दी। रामप्रसाद बिस्मिल को प्रेरणा देकर मातृवेदी की स्थापना की और चम्बल के बागी डाकुओं को क्रांति में उतरा क्रन्तिकारी गेंदालाल दीक्षित  भदावर गौरव  गेंदालाल दीक्षित व बागी दुर्दांत डकैत लक्ष्मणानंद ब्रह्मचारी और डकैत ठाकुर पंचमसिंह के संगठित दल ने ग्वालियर तथा यमुना और चम्बल नदी के किनारे के भागों में सफलतापूर्वक अनेक डाके डाले और धन का उपयोग क्रांति के लिए हथियारों की व्यवस्था की, पर मुखबरी के कारण गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में ' मैनपुरी षड़यन्त्र &

पनगोजा : भूला बिसरा लाजवाब भदावरी पकवान

चने की दाल के पकवान शास्त्रों के अनुसार सावन में लाभकारी होते हैं और इनके प्रयोग से भोलेनाथ बटेश्वरनाथ की कृपा से परिवार में खुशियाँ बरसती है। शिवलिंग पर चने की दाल चढ़ाएं और पूजन के बाद इसका दान करें और परिवार सहित चने की दाल के व्यंजनों का आनंद लीजिये। पनगोजा भकोसा रेसपी  भदावरी रेसिपी प्रस्तुत है। चना दाल रात भर फूलने के लिए रख दीजिए। दालों के फूलने के बाद मिक्सर में या सिल पर पीस लीजिये। जीरा, अजवाइन, खड़ा धनिया तवे पर भूनकर पीस लीजिए। हल्दी पाउडर, हींग पाउडर, सोंठ पाउडर को भी हल्का सा भून लीजिए। इन सब मसालों व नमक को पिसी दाल में मिला दीजिए। गेहूं का आटा माड़ लीजिए, कुछ कड़ा रहे। रोटियां बेलिए और दाल व मसालों के मिश्रण को बीच में रखकर गुझियां जैसे बना लीजिए। एक कड़ाही में दो तीन लीटर पानी, एक चम्मच नमक व दो तीन चम्मच तेल पानी में डालकर गर्म कीजिये। जब पानी उबलने लगे तब कड़ाही के मुंह की चौड़ाई के आधार पर चार-चार या पांच-पांच दाल की गुझिया पानी में डाल दीजिए।  पनगोजा : भूला बिसरा लाजवाब भदावरी पकवान  पनगोजा खौलते पानी में डूब जाएंगे और कुछ देर बाद ऊपर आकर तैरने लगेंगे,

आईएएस बनना चाहती है रोशनी भदौरिया 10वीं की परीक्षा में 98.5%अंक !

भिंड जिले के मेहगांव विधानसभा के गांव अजनोल की बेटी पंद्रह वर्षीय रोशनी भदौरिया ने 10वीं की परीक्षा में 98.5%अंक लाकर अपने गांव का नाम रौशन किया है और पदेश की मैरिट लिस्ट में जगह बनाई है । उन्हें रोज अपने गांव से 12 किलोमीटर साइकल चलाकर मेहगांव तक पढ़ाई करने जाना पड़ता है बारिश हो या तेज धूप या फिर कोहरे का कहर, रोशनी ने हर मौसम से डटकर मुकाबला करते स्कूल पहुँचती। रोशनी के पिता पुरुषोत्तम भदौरिया किसान हैं और बेटी की इस उपलब्धि से गौरवान्वित हैं। रोशनी भदौरिया आगे अपनी पढ़ाई करके आईएएस बनना चाहती है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने मुख्य पृष्ठ पर सराहना की है।  

कॅरोना लॉकडाउन

ये सामान्य समय नहीं है, मानव जाति वैश्विक संकट का सामना कर रही है, शायद हमारी पीढ़ी का सबसे बड़ा संकट ? अगले कुछ हफ्तों में लोगों और सरकारों ने जो निर्णय लिए हैं वे शायद आने वाले वर्षों के लिए दुनिया को आकार देंगे। वे न केवल हमारी स्वास्थ्य प्रणाली बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था, राजनीति और संस्कृति को भी आकार देंगे। हमें जल्दी और निर्णायक रूप से कार्य करना होगा। हमें अपने कार्यों के दीर्घकालिक परिणामों को भी ध्यान में रखना चाहिए। विकल्पों के बीच चयन करते समय, हमें अपने आप से न केवल यह पूछना चाहिए कि तत्काल खतरे को कैसे दूर किया जाए, बल्कि यह भी कि तूफान के गुजरते ही हम किस तरह की दुनिया में बस जाएंगे। हां ! तूफान गुजर जाएगा, मानव जाति बच जाएगी, हम में से अधिकांश अभी भी जीवित होंगे - लेकिन हम एक अलग दुनिया में निवास करेंगे। कई अल्पकालिक आपातकालीन उपाय जीवन की स्थिरता बन जाएंगे। यह आपात स्थिति की प्रकृति है की वह  प्रक्रियाओं को तेजी से आगे बढ़ाते हैं। ऐसे निर्णय जो सामान्य समय में विचार-विमर्श के वर्षों में ले सकते हैं, कुछ ही घंटों में पारित हो जाते हैं। अपरिपक्व और यहां तक कि खत