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Showing posts from 2010

लंगुरिया :भदावर की माटी की सौंधी-सौंधी गंध

लंगुरिया : भदावर में गाया जाने वाला लोकगीत है भदावर के लोकगीत लंगुरिया में चंबल की माटी की सौंधी-सौंधी गंध महकती है। लांगुरिया भजन  करौली की कैलादेवी की स्तुति में गाए जाते है लांगुरिया - काल-भैरव जो कैलादेवी का गण है को सम्बोधित करते हुए गाए जाते हैं। भैरव शब्द का अर्थ ही होता है - भीषण, भयानक, डरावना, भैरव को शिवपुत्र भी माना जाता है। भदावर की मिटटी पर यह भीषण, भयानक, डरावना काल-भैरव भी लांगुर-लांगुरिया बन, करौली की कैलादेवी के मंदिर तक पदयात्रियो के साथ-साथ नाचता हुआ चलता है महिला एवं पुरूष उससे संवाद करते करते सफ़र की थकान भूल जाते है। महिला एवं पुरूष बडे ही भक्तिभाव से कैलादेवी और लांगुरिया को रिझाने के लिए लोकगीत गाते हैं। भदावर के गाँव-गाँव से ध्वज पताकाओं, नेजों के साथ छोटे-छोटे मंदिर वाहनों पर सजाकर गाते-बजाते, नाचते-कूदते भावविभोर होकर करौली मां के दरबार में अपनी मुरादें पूरी करने के लिए चल पड़ते है तथा मार्ग में लांगुरिया को सम्बोधित करते हुए गा उठते है :-    करिहां चट्ट पकरि के पट्ट नरे में ले गयो लांगुरिया॥ टेक॥ आगरे की गैल में दो पंडा रांधे खीर, चूल्ही फ़ूंक

भदौरिया कुटुम्ब

भदौरिया एक प्रशिद्ध और राजभक्त कुल है इनका नाम ग्वालियर के ग्राम भदावर पर पड़ा भदौरिया साम्राज्य का उदय  चम्बल घाटी के खारों  में बड़ी ही विसम पर्तिस्थियों में हुआ ।  उनके गढ़ पर समय समय पर सय्यिद राजाओ का आक्रमण होता रहा । भदौरिया हमेशा ही दिल्ली के सुलतान से बगावत करते रहे, वे अपने शौर, उग्र सव्भाव और स्वाधीनता प्रेम के लिए जाने जाते है।  इस कुटुम्ब के संस्थापक मानिक राय (720-794), अजमेर को मना जाता है, उनके पुत्र राजा चंद्रपाल देव (चंद्रवार के राजा 794-816) ने "चंद्रवार" रियासत की स्थापना की और वहां एक किले का निर्माण कराया। चंद्रवार 1208 तक भदौरियो के अधिपत्य में रहा । मुगलों ने बाद में इस का नाम फिरोजाबाद  कर दिया। चन्द्रपाल देव के पुत्र राजा भदों राव (816-842) लोकप्रिय नाम "भादूराणा" ने भदौरागढ़ नामक नगर बसाया (इसका वर्तमान नाम पिनहाट है ) और उन्होने 820 में उत्तंगन नदी के तट पर किले का निर्माण कराया । 'भदौरा' के निवासी भदौरिया नाम जाने जाने लगे। राव कज्जल देव (1123-1163) ने 1153 में हथिकाथ पर कब्जा किया और अपनी राज्य की सीमओं को आज की बाह तहसील तक ब

भदावर - महाभारत काल

भदावर - महाभारत काल में प्राचीन भद्रावर्त राज्य था । महत कांतार (हतकांत) विंध्याटवी (अटेर) तथा विंध्यकानन (भिंड) इसके एतिहासिक साक्षी हैं । पांडव काल में भद्रावर्त राज्य एक समृद्ध गणराज्य था । यहाँ के क्षत्रिय विपुल साधन सम्पत्र थे यहाँ के राजकुमार बहुत सा रत्न धन सुवर्ण लेकर युधिष्ठर यज्ञ में उपस्थित हुए थे और उसे यज्ञ की भेंट किया । अथर्वद के गोपाल तापिनी उपनिषद में गोपाल के प्रिय दो बनों में भद्रवन का उल्लेख है जो यमुना के तट पर था । द्वेबने स्त: कृष्णवनं भद्रवनं- पुण्यानि पुष्य तमानि तेष्वेव देवा स्तिष्ठन्ति सिद्धा: सिद्धिं प्राप्ता: ई वेदों के अनुसार- 'भदंकर्णेभि श्रृणुयाम देवा:' - देवों की वाणी "भद्रश्रव" भदावर की बोली थी । “मथुरामंडल में बसै, देश भदावर ग्राम। ऊखल तहाँ प्रसिद्ध महि, क्षेत्र बटेश्वर नाम।।