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Showing posts from 2014

भदौरिया : गोत्रचार-शाखाचार

भ दौरिया वंश के गोत्रचार शाखाचार इस प्रकार है  वंश : अग्निवंशी   राजपूत गोत्र : वत्स शाखा   : राउत , मेनू , तसेला , कुल्हिया , अठभईया रियासत : चंद्रवार ,  भदावर ,  गोहद ,  धौलपुर ईष्ट देव : बटेश्वरनाथ (महादेव शिव) ईष्ट देवी : भद्रकाली ( भदरौली व् अमहमदाबाद) मंत्र : ॐ ग्लौं भद्रकाल्यै नमः नगाड़ा : रणजीत निसान : केसरिया वृक्ष : पीपल पक्षी : परेवा (कबूतर) वेद : श्याम तीर्थ : बटेश्वर घाट : विठूर लोकगीत : लंगुरिया , सपरी शस्त्रीय संगीत : ग्वालियर घराना

भदावर अटेर का देवगिरि दुर्ग

अटेर का क़िला ,भदावर का  एक विशाल - शानदार ,  मध्ययुगीन किला   है।   चंबल नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है    जो   अपनी महिमा के साथ - साथ अपनी भव्यता के लिए विख्यात रहा है अटेर का क़िला चम्बल नदी के किनारे एक ऊंचे स्थान पर स्थित है। महाभारत में जिस  देवगिरि पहाड़ी का उल्लेख आता है ये किला उसी पहाड़ी पर स्तिथ है। इसका मूल नाम देवगिरि दुर्ग है। अटेर का किला जलपोत के आकर का है यहाँ भी बटेश्वर की तरह चम्बल की तरह बांध बना कर उसे उत्तर की और मोड़ा गया था । Ater Fort  इस किले का निर्माण विभिन्न भदौरिया राजाओं के शासनकाल में सम्पन्न कराया गया। किले के निर्माण का प्रारंभ सन् 1498 में राजा करन सिंह ने कराया किन्तु इतिहास कारों के अनुसार एक शिलालेख के आधार पर सन् 1644 में राजा बदनसिंह ने इस किले का निर्माण कराया था। किन्तु राजा महासिंह व राजा बखत सिंह के समय में निर्माण पूर्ण हुआ। इस किले का निर्माण भी राजनीतिक व सामरिक सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण था। यह किला एक विशाल क्षेत्र में फ़ैला है , यह उत्तर से दक्षिण तक 700 फुट और पूर्व से पश्चिम तक 325 फुट में है , इसमें चार मुख्य प्

भदावर राष्ट्रगान

आन-बान है शान जगत की, दुनिया में सरनाम  भिण्ड-भदावर की धरती को, बारम-बार प्रणाम  चम्बल, क्वांरी, यमुना बहके, अमृत पिलवाती  इनके घाटो की हरयाली, सबके मन भाति  सुबह लुटाती चांदी-सोना, हीरे-मोती शाम -२  भिण्ड-भदावर की धरती को, बारम-बार प्रणाम  किला अटेर है बदन सिंह का राजवंश के खाते  मंदिर बने बटेसुर जिसपर प्रजा शीष झुकाती  वीरो की गाथा दोहराता, है भदौरिया नाम -२  भिण्ड-भदावर की धरती को, बारम-बार प्रणाम  भिण्ड शहर में भिन्डी ऋषि का बना हुआ है मंदिर  वनखण्डेश्वर, गौरी सरोवर शिद्ध मंदिर है सुन्दर इतिहासों में लिखा हुआ है इनका अपना काम -२  भिण्ड-भदावर की धरती को, बारम-बार प्रणाम  आन-बान है शान जगत की, दुनिया में सरनाम  भिण्ड-भदावर की धरती को, बारम-बार प्रणाम ------------ भदावर राष्ट्रगान MP3 डाउनलोड करे  : मोबाइल रिंगटोन बनाये  -----------------

भदावर - लोक-गीतकार

भ दावर प्रदेश में नैसर्गिक सौंदर्य कूट कूट के भरा है यमुना और चम्बल के खारों में उगते बबूल , छेंकुर , हिंसिया , रेमजा आदि के वृक्ष रहस्यमई वातावरण का सृजन करते है तभी तो चौबे लक्ष्मीनारायण गा उठते है - भव्य भदावर धन्य धन्य तब भूमि पुरातन , जहाँ चम्बल लहरात बहति जमुना अति पावन। जित देखो बन विकट रेत चहुँ दिस धूल छाई , बेहड़ की शोभा अपार कछु बरनि न जाई। कहुँ ऊँचे है व्योम बादरन सों बतरावत , कहुँ नीचे धंसि धुव पाताल की सैर दिखावत। हरे भरे जे दिव्य वृक्ष आरोपित कीन्हे , सब तुम भय सों सूख प्राण अपने तनि दीन्हें।

भदावरी कहावते - 2

महाभारत काल से ही भदावर अपनी भौगोलिक स्तिथि के करण भील-डाकुओं का स्थाई निवास बना रहा था । महाभारत (मूसलपर्व 15/22) में कथा आती है की कृष्ण के प्रस्थान के बाद बटेश्वर-सौरिपुर में बचे-कुछे बच्चो व स्त्रियों को लेकर जब धनुर्धर अर्जुन जा रहे थे तो भीलों ने अर्जुन को स्त्रियों सहित लूट लिया था । अर्जुन का गांडीव भी स्त्रियों- बच्चो की रक्षा ना कर सका था गांडीव धारी अर्जुन की ये पराजय लोकजीवन आज भी नहीं भुला है । भदावर में आज भी कहावत कही जाती है - " सबे दिन रहत न एक समान भीलन लूटीं गोपिका बेई अर्जुन बेई बान " प्राचीन भदावरी कहावतें जिनके गूढ अर्थ को अगर समझा जाये तो वे अपने अपने अनुसार बहुत ही सुन्दर कथन और जीवन के प्रति सावधानी को उजागर करती थी। इसी प्रकार से एक कहावत इस प्रकार से कही जाती है ।

भदावरी कहावते - 1

भ दावरी कहावते अपने पैने, प्रभावशाली और सशक्त संकेतों से इस छेत्र के जनसमुदाय का युगों–युगों से मार्ग निर्देशन करती आ रही है।  ये कहावते सोए को जगाती है, आलसियों को झकझोरती है, मूर्खों को समझाती है बच्चों को दुलारती है धूतों को डांटती है, बेईमानों पर उंगली उठाती है पथभ्रष्टों को हड़काती है और पाखण्ड पर कठोर प्रहार करती है । सुन्दर नीति से कही गयी उक्ति को सूक्ति कहते है। ऐसी ही उक्तिंयां लोक व्यवहार और जन सामान्य के प्रयोग मे आकर लोकोक्तियों या कहावते बन जाती है। किसी तथ्य के खण्डन या पुष्टि अथवा विरोध या समर्थन के लिए रामवाण बन जाती है। लोक कण्ठों पर थिरकती कहावते लोक व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी होती है और कहावतो का विशिष्ट लाक्षणिक अर्थ ही ग्रहण किया जाता है। भदावर में "खीर मे सांझे महेरी में न्यारे ।।" रहने वालों को तुरन्त परख लिया जाता है। लोक व्यवहार को परखती ये कहावते आगे बढती है तो छोटा परिवार सुखी परिवार होता है लेकिन जहां इस नियम का पालन नही होता है उस घर की लक्ष्मी दीवाल तोड़कर निकल जाती है। "सास बहु की एकई सोर, लच्छो कड़ गई पाखौ फोर।। &q