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Showing posts from May, 2014

भदावर - लोक-गीतकार

भ दावर प्रदेश में नैसर्गिक सौंदर्य कूट कूट के भरा है यमुना और चम्बल के खारों में उगते बबूल , छेंकुर , हिंसिया , रेमजा आदि के वृक्ष रहस्यमई वातावरण का सृजन करते है तभी तो चौबे लक्ष्मीनारायण गा उठते है - भव्य भदावर धन्य धन्य तब भूमि पुरातन , जहाँ चम्बल लहरात बहति जमुना अति पावन। जित देखो बन विकट रेत चहुँ दिस धूल छाई , बेहड़ की शोभा अपार कछु बरनि न जाई। कहुँ ऊँचे है व्योम बादरन सों बतरावत , कहुँ नीचे धंसि धुव पाताल की सैर दिखावत। हरे भरे जे दिव्य वृक्ष आरोपित कीन्हे , सब तुम भय सों सूख प्राण अपने तनि दीन्हें।