Skip to main content

नाई - पंडित - ठाकुर

पिनाहट बाजार में एक नाऊ दुकान धरें हतो, वाये ग्राहक सों मजाक करन में विशेष आनंद आत हतो। कोउ बार बनवाने- दाढ़ी छिलवाने बैठो नहीं के वाको मज़ाक शुरू - काये ! तुमाए गाल तौ लाल टिमाटर हेगये, भौजाई ने रात काट लऔ हतो ?  अब ग्राहक बेचारा बीच में उठकर जा भी नहीं सकता,  सो बेबसी में सहता और चुप रहता।

सबको पता है की नाई और पंडित की खूब छनती है व दोनो ही एक दूसरे की चालों को काट भी सकते हैं। एक दिन एक पंडितजी दाढी बनवाने आये पर नाई ने उनका पूरा सिर ही मूड़ दिया, पंडितजी बोले कि चलो रोज-रोज तेल लगाने से फ़ुरसत मिली, मगर जैसे ही पंडित उठने लगे नाई ने चाँद पर टोना मार दिया पंडितजी ने क्रोध को शांत किया और बोले कुछ नहीं और कुछ सोच कर एक अधन्नी अधिक उस नाई को मजूरी देदी, नाई ने पूंछा कि पंडितजी ज्यादा क्यों?  पंडितजी बोले के आज बहुत ही अच्छा मुहूरत है, जो भी तेरा टोना खायेगा, उसके तो राजकाज हो जायेंगे। नाई सोच में पड़ गया - ये तो बात ही उल्टी हो गयी, उसने चलते हुए पंडितजी से पूंछा कि, ऐसा समय कब आयेगा, जब मैं जिसके टोना मारूं और वो बरबाद हो जाये। पंडितजी ने भी अपने मन में नाई का अंत सोच लिया और बोले कि रविवार के दिन दोपहर को जिस भी आदमी के टोना मारोगे, वह उसी दिन से बरबाद हो जायेगा। 

नाई ने अपने मन में प्लान बना लिया, एक ठाकुर साहब उसे बहुत परेशान करते थे और नाइन भी ठकुराइन की मालिश करते-करते परेशान थी। नाई के मन में हिसाब बराबर करने की तमन्ना थी ही, सो वो रविवार के दिन ठाकुर साहब के घर पहुँच गया और ठाकुर साहब की खोपडी मूंडने के लिये उस्तरा तेज करने लगा, ठाकुर ने पूंछा रे आज उस्तरा इतना तेज क्यों कर रहा है, आज तो मै केवल दाढी ही बनवाऊंगा। उसने भी पंडित की तरह बता दिया कि आज जो भी चांद मुडवायेगा, वह राजपाट का अधिकारी होगा, उसने जल्दी से ठाकुर की चांद मूंड दी और एक टोना ठाकुर की खोपडी मे जड दिया। 

ठाकुर को बहुत बुरा लगा कि एक नाई ने उसकी चांद टोन्या दी, क्रोधवश पास में रखी तलवार उठाई और एक ही वार में नाई का सर उनके हाथ में था, पंडित की सीख के कारण नाई तो मारा ही गया और ठाकुर भी कोर्ट कचहरी के चक्कर लगा-लगा कर बरबाद हुआ।  तो अब बताओ महाभारत काल की पांडवो की हाट - पिनहट का बाजार का बाज़ार क्यो उजड़ा ;)

Popular posts from this blog

भदौरिया : गोत्रचार-शाखाचार

भ दौरिया वंश के गोत्रचार शाखाचार इस प्रकार है  वंश : अग्निवंशी   राजपूत गोत्र : वत्स शाखा   : राउत , मेनू , तसेला , कुल्हिया , अठभईया रियासत : चंद्रवार ,  भदावर ,  गोहद ,  धौलपुर ईष्ट देव : बटेश्वरनाथ (महादेव शिव) ईष्ट देवी : भद्रकाली ( भदरौली व् अमहमदाबाद) मंत्र : ॐ ग्लौं भद्रकाल्यै नमः नगाड़ा : रणजीत निसान : केसरिया वृक्ष : पीपल पक्षी : परेवा (कबूतर) वेद : श्याम तीर्थ : बटेश्वर घाट : विठूर लोकगीत : लंगुरिया , सपरी शस्त्रीय संगीत : ग्वालियर घराना

भदौरिया कुटुम्ब

भदौरिया एक प्रशिद्ध और राजभक्त कुल है इनका नाम ग्वालियर के ग्राम भदावर पर पड़ा भदौरिया साम्राज्य का उदय  चम्बल घाटी के खारों  में बड़ी ही विसम पर्तिस्थियों में हुआ ।  उनके गढ़ पर समय समय पर सय्यिद राजाओ का आक्रमण होता रहा । भदौरिया हमेशा ही दिल्ली के सुलतान से बगावत करते रहे, वे अपने शौर, उग्र सव्भाव और स्वाधीनता प्रेम के लिए जाने जाते है।  इस कुटुम्ब के संस्थापक मानिक राय (720-794), अजमेर को मना जाता है, उनके पुत्र राजा चंद्रपाल देव (चंद्रवार के राजा 794-816) ने "चंद्रवार" रियासत की स्थापना की और वहां एक किले का निर्माण कराया। चंद्रवार 1208 तक भदौरियो के अधिपत्य में रहा । मुगलों ने बाद में इस का नाम फिरोजाबाद  कर दिया। चन्द्रपाल देव के पुत्र राजा भदों राव (816-842) लोकप्रिय नाम "भादूराणा" ने भदौरागढ़ नामक नगर बसाया (इसका वर्तमान नाम पिनहाट है ) और उन्होने 820 में उत्तंगन नदी के तट पर किले का निर्माण कराया । 'भदौरा' के निवासी भदौरिया नाम जाने जाने लगे। राव कज्जल देव (1123-1163) ने 1153 में हथिकाथ पर कब्जा किया और अपनी राज्य की सीमओं को आज की बाह तहसील तक ब

भदावरी ग्रामीण कहावतें: व्यक्तिगत गुणों की परख और मजेदार कहावतें !

भदावरी ग्रामीण कहावतें पुराने बुजुर्गों की कहावतें में कमाल की परख मिलती है मनुष्य की शारीरिक रचना से उसके व्यतिगत गुणों को परखती ये कहावत सौ में सत्तर आदमी पर सटीक बैठती है ये हिंदी कहावत अभद्र कहावतें की श्रेणी की लग सकती है इस कहावत  में गूढ़ अर्थ के साथ कुछ शरारत भी नजर आती है और ये कहावत मजेदार कहावतें हो सकती हैं : सौ में सूर सहस में काना, सवा लाख में ऐचकताना, ऐंचकताना करे पुकार, कंजा से रहियो हुशियार, जाके हिये न एकहु बार, ताको कंजा ताबेदार, छोट गर्दना करे पुकार, कहा करे छाती को बार, अथार्त : एक अंधा सौ नेत्र वालो के बराबर व एक काना हजार के बराबर होता है। अंधे के प्रति स्वाभाविक दया भाव के कारण अँधा अगर चाहे तो सौ लोगो को छल सकता है, उसी प्रकार काने व्यक्ति में हजार लोगो को चलने की कुव्वत होती है। जब ध्यान केंद्रित करना होता है तो एक आँख बंद की जाती है, जैसे बन्दुक से निशाना लगाने के लिए, ये गुण काने में स्वाभाविक रूप में विधमान होता है तो वह हजार लोगो को अपने अनुसार चला सकता है। बात काटने वाले व्यक्ति को ऐंचकताना कहा जाता है, इस प्रकार का व्यक्ति अनुभवी होता है और सभी क्षेत्रो क