Skip to main content

Posts

Showing posts from 2019

भदावर गौरव : सेना में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली महिला

भदावर गौरव : अंजना भदौरिया अंजना भदौरिया जब वह छोटी थी, तो भारत के राष्ट्रपति द्वारा कमीशन प्राप्त करके एक राजपत्रित अधिकारी बनने और सेना की  वर्दी पहनने का आकर्षण, उसके लिए सेना में शामिल होने के लिए पर्याप्त प्रेरणा थी।   माइक्रोबायोलॉजी में एमएससी पूरा करने के बाद, उन्होंने सेना में महिला अधिकारियों को शामिल करने का विज्ञापन देखा कर आवेदन कर दिया। 1992 में भारतीय सेना में महिला कैडेटों के ऐतिहासिक पहले बैच में उन्हें स्वीकार किया गया और वे  बैच में स्वर्ण पदक रही, इस तरह  विजेता अंजना भदौरिया को सेवा संख्या 00001 दी गयी। अंजना भदौरिया के पिता वायुसेना में अफसर थे।  प्रशिक्षण के दौरान हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए, उसे एक ऐसे बैच से स्वर्ण पदक के लिए चुना गया, जिसमें महिला और पुरुष दोनों शामिल थे। उन्होंने शॉर्ट सर्विस कमीशन पर उसने 10 साल तक सेना के साथ काम किया। दुर्भाग्य से उसके उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद उन्हें  इस अवधि से आगे जारी रखने की अनुमति नहीं दी गई। अंजना  भदौरिया  दिल्ली में समग्र खाद्य प्रयोगशाला में कार्यवाहक सीओ के रूप में

शहीद मेला 2020 : बेवर मैनपुरी

"शहीद मेला" देश में शहीदों की याद में लगने वाला सबसे लंबी अवधि का मेला है जो कि 19 दिनों तक मैनपुरी जनपद के बेवर नामक स्थान पर लगता है| इस मेले में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के तमाम जाने अनजाने अमर शहीदों, क्रांतिवीरों को याद किया जाता है|यह मेला उनके विचारों व स्मृतियों को संजोए रखने का एक प्रयास है। वर्ष 1942 का समय था उस समय देश पराधीन था| महात्मा गांधी ने ब्रिटिश  सरकार के विरूद्ध "भारत छोड़ो आन्दोलन" छेड़ रखा था| वे भारत को पूर्ण रूप से स्वतंत्र देखना चाहते थे| "'भारत छोड़ो आन्दोलन"' के कारण विभिन्न स्थानों पर ब्रिटिश सत्ता के विरूद्ध भारतीय जनमानस द्वारा जन-जागरण,जुलूस, विदेशी सामानों के बहिष्कार के द्वारा तीव्र विरोध हो रहे थे इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के बेवर नामक स्थान पर 14 अगस्त 1942 को जूनियर हाईस्कूल (कक्षा 6 व् 7 के छात्र ) व बेवर के कुछ उत्साही युवा छात्र (हाथों में तिरंगा थामे जूलुस निकाल रहे थे)। इन उत्साही युवाओं ने थानेदार आलेअली की पिस्तौल छीन ली व थाने पर कब्ज़ा कर लिया। अंग्रेजी सत्ता की आँख में ये का

ब्रिगेडियर रणबीर सिंह भदौरिया !!!

1924 में शुरू हुई रुदमुली गांव ( बाह आगरा ) की सैनिक परम्परा के रुप में रणबीर सिंह भदौरीया - भारतीय अधिकारियों के पहले बैच में चुने अधिकारियों में से एक थे, जिन्हें बहादुरी के लिए मिलिटरी क्रॉस प्रदान किया गया जोकि ब्रिटिशों का दूसरा सबसे बड़ा बहादुरी पुरस्कार है।  चीनी आकर्मण का मुहतोड़ जवाव दिया और पाकिस्तान के द्वारा कब्जे में लिए आरएस पूरा सेक्टर को पुनः आपने कब्जे में लिया। संयुक्त शांति बल के तत्वाधान में बतौर मिलिटरी आब्जर्वर लेबनान में तैनात रहे 1968 में सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर पद पर हुए। ब्रिगेडियर रणवीर  सिंह भदौरिया ने 1962 के युद्ध में चीन के दाँत खट्टे कर दिए थे और 1965 में पाक सेना को जम्मू कश्मीर के आर एस पूरा सेक्टर से खदेड़ कर दोबारा कब्ज़ा किया था। इन की शहादत को नमन करता युद्ध स्मारक रुदमुली गांव में है | इस गांव ने 1924 में रणबीर सिंह भदौरिया, एमसी (मिलिटरी क्रॉस) के रूप में "प्रथम भारतीय बैच ऑफ आर्मी ऑफिसर" दिया, जो बाद में ब्रिगेडियर के पद से सेवानिवृत्त हुए।  ब्रिगेडियर रणबीर सिंह भदौरिया सैनिक परंपरा के निर्वाह का अदुतीय उदाहरण तब प्रस्तुत हुआ जब राजपूत र

चौंसठ योगनी मन्दिर, मितावली मुरैना

चम्‍बल गूढ़ व रहस्‍यमय तंत्र शक्तियों का खजाना अपने सीने में समेटे हुये है। मुरैना के मितावली ग्राम में स्थित चौंसठ योगनी मन्दिर का तंत्र शास्‍त्र में अत्‍यधिक महिमा है। कहा जाता है की भारतीय संसद की वास्तुकला इसी चौसठ योगिनी मंदिर से प्रेरित है। जी हाँ ये वही मुरैना है, जो गजक की मिठास और बीहड़ों की भयावहता के लिए प्रसिद्ध है। भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक़, इस मंदिर को ग्यारवी सदी में बनवाया गया था। इसे इकंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस गोलाकार  मंदिर की ऊंचाई भूमि तल से 300 फीट है और इसकी त्रिज्या 170 फीट है मध्य में एक खुला हुआ मण्डप है। इसका निर्माण तत्कालीन प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने किया था। यह मंदिर गोलाकार है। इसी गोलाई में बनी चौंसठ कोठरियों में एक-एक योगिनी स्थापित थी। मंडित के मध्य मुख्य परिसर में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। यहाँ भगवान शिव के साथ चौंसठ देवी योगिनी की मूर्तियां भी थीं, इसलिए इसे चौंसठ योगिनी शिवमंदिर भी कहा जाता है। देवी की कुछ मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं और कुछ मूर्तियां विभिन्न संग्रहालयों में भेजी गई हैं। योगिनी क्या है - साठ और चा

कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया

डाकुओं के आतंक लिए कुख्यात चंबल घाटी में आजादी की मुहिम में अर्जुन सिंह भदौरिया का महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। उन्हें इसी मुहिम के चलते कमांडर नाम से पुकारा गया।  कमांडर अर्जुन सिंह भदौरिया  10 मई 1910 को इटावा जिले के ब्लाक बसरेहर क्षेत्र के लोहिया खुर्द गांव में जन्मे अर्जुन सिंह भदौरिया ने 1942 में अंग्रेजी शासन के खिलाफ आज़ादी का  बिगुल फूंक दिया और सशस्त्र लालसेना का गठन किया, जिसकी  प्रेरणा उन्हें रूस में गठित लालसेना से मिली थी जो रूस में बहुत ही सक्रिय सशस्त्र बल था। जब चंबल में कमांडर साहब ने लालसेना खड़ी की तो लोग एक के बाद एक जुड़ना शुरू हो गये और एक समय वो आया जब लालसेना का प्रभुत्व पूरे चंबल में नजर आने लगा, लाल सेना में करीब पांच हजार सशस्त्र सदस्य आजादी के आंदोलन में हिस्सेदारी ले रहे थे। उन्होंने सक्रिय क्रांतिकारी भूमिका अपनाई और लाल सेना में सशस्त्र सैनिकों की भर्ती की तथा ब्रिटिश ठिकानों पर सुनियोजित हमला करके आजादी हासिल करने का प्रयास किया। इस दौरान अंग्रेजी सेना की यातायात व्यवस्था, रेलवे डाक तथा प्रशासन को पंगु बना दिया गया था। इस क्रांतिकारी संग्राम

अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव

भदावर गौरव पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक गांव बीहड़ में स्थित बटेश्वर है। 101 साल पहले अंग्रेजों ने एक रुपए का नुकसान होने की वजह से अटल जी के गांव तक ट्रेन का संचालन रोक दिया था। अंग्रेजो ने इटावा से आगरा के लिए बटेश्वर गांव के पास छोटी लाइन का ट्रैक बिछाया था, लेकिन इस रूट पर ट्रेन चलाना अंग्रेजों को महंगा पड़ रहा था। कहा जाता है कि एक रुपए के नुकसान की वजह से अंग्रेजों ने इस रूट को बंद कर दिया था।

सरोखीपुरा फाग 2019 - कैप्टन प्रह्लाद यादव