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Nostalgic Territory of Bhadauria's

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भदावर : एक गौरवशाली रियासत की विरासत और ब्रिटिश न्यायालय की छाया

भदावर की शौर्यगाथा और सांस्कृतिक वैभव - भदावर, एक ऐतिहासिक रियासत थी यह क्षेत्र भदौरिया क्षत्रियों की कर्मभूमि रहा है, जिनका इतिहास वीरता, आत्मसम्मान और जनहितकारी प्रशासन से भरा पड़ा है। भदावर की मिट्टी से निकली गाथाएं न केवल तलवार की धार में झलकती हैं, बल्कि लोकगीतों और पीढ़ी-दर-पीढ़ी सुनी गई कहानियों में भी जीवित हैं। 19वीं शताब्दी के अंत तक भदावर एक समृद्ध और स्वायत्त ज़मींदारी थी। यहाँ के शासकों का संबंध ब्रितानी शासन से था और उन्होंने कई बार उपाधियाँ प्राप्त की थीं। इन्हीं में से एक थे महाराजा महेन्द्र सिंह, जिन्हें "Companion of the Indian Empire (C.I.E.)" की उपाधि भी मिली थी।  📜 नोटिस की पृष्ठभूमि : एक अधिसूचना जो इतिहास बन गई  - 21 अगस्त 1902 को संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के राजपत्र में एक अधिसूचना प्रकाशित हुई - जिसमें घोषित किया गया कि राजा महेन्द्र मान सिंह भदौरिया, उस समय केवल छह वर्ष के थे, और चूंकि वे नाबालिग थे, अतः उनके तथा भदावर एस्टेट की पूरी संपत्ति की निगरानी और प्रशासन कोर्ट ऑफ वार्ड्स एक्ट, 1899 के तहत ब्रिटिश सरकार ने अपने हाथ में ले ली थी। W.H. ...

Hare Krishna Singh Bhaduria : Unsung Heroes of India’s freedom struggle

हरेकृष्ण सिंह भदौरिया का जन्म सन् 1827 में बिहार के तत्कालीन शाहाबाद ज़िले ( वर्तमान में भोजपुर ज़िला ) के बारुही ( पुराना नाम बारुभी ) गांव में हुआ था। यह गांव अब बिहार के भोजपुर जिले के सहर प्रखंड में आता है। उनके पिता श्री ऐदल सिंह भदौरिया एक प्रतिष्ठित जमींदार थे , जिनकी जमींदारी पीढ़ियों से चली आ रही थी। उनका परिवार मूल रूप से क्षत्रिय भदौरिया वंश से संबंधित था , जो उत्तर भारत के गौरवशाली योद्धा वर्ग से ताल्लुक रखता है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले हरेकृष्ण सिंह भदौरिया , जगदीशपुर रियासत के अधीन “ पीरो ” परगना के तहसीलदार थे। वे प्रशासनिक दृष्टि से कुशल , कूटनीतिक और लोगों में लोकप्रिय थे। उनकी नेतृत्व क्षमता के चलते उन्हें , जगदीशपुर रियासत के उज्जैनिया वंश के राजा बाबू कुँवर सिंह परमार का विश्वास प्राप्त हुआ और उन्हें कमांडर इन चीफ बना कर सैन्य मामलों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। 1857 की क्रांति में योगदान : हरेकृष्ण सिंह भदौरिया 1857 की क्र...