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Showing posts from 2020

पनगोजा : भूला बिसरा लाजवाब भदावरी पकवान

चने की दाल के पकवान शास्त्रों के अनुसार सावन में लाभकारी होते हैं और इनके प्रयोग से भोलेनाथ बटेश्वरनाथ की कृपा से परिवार में खुशियाँ बरसती है। शिवलिंग पर चने की दाल चढ़ाएं और पूजन के बाद इसका दान करें और परिवार सहित चने की दाल के व्यंजनों का आनंद लीजिये। पनगोजा भकोसा रेसपी  भदावरी रेसिपी प्रस्तुत है। चना दाल रात भर फूलने के लिए रख दीजिए। दालों के फूलने के बाद मिक्सर में या सिल पर पीस लीजिये। जीरा, अजवाइन, खड़ा धनिया तवे पर भूनकर पीस लीजिए। हल्दी पाउडर, हींग पाउडर, सोंठ पाउडर को भी हल्का सा भून लीजिए। इन सब मसालों व नमक को पिसी दाल में मिला दीजिए। गेहूं का आटा माड़ लीजिए, कुछ कड़ा रहे। रोटियां बेलिए और दाल व मसालों के मिश्रण को बीच में रखकर गुझियां जैसे बना लीजिए। एक कड़ाही में दो तीन लीटर पानी, एक चम्मच नमक व दो तीन चम्मच तेल पानी में डालकर गर्म कीजिये। जब पानी उबलने लगे तब कड़ाही के मुंह की चौड़ाई के आधार पर चार-चार या पांच-पांच दाल की गुझिया पानी में डाल दीजिए।  पनगोजा : भूला बिसरा लाजवाब भदावरी पकवान  पनगोजा खौलते पानी में डूब जाएंगे और कुछ देर बाद ऊपर आकर तैरने लगेंगे,

आईएएस बनना चाहती है रोशनी भदौरिया 10वीं की परीक्षा में 98.5%अंक !

भिंड जिले के मेहगांव विधानसभा के गांव अजनोल की बेटी पंद्रह वर्षीय रोशनी भदौरिया ने 10वीं की परीक्षा में 98.5%अंक लाकर अपने गांव का नाम रौशन किया है और पदेश की मैरिट लिस्ट में जगह बनाई है । उन्हें रोज अपने गांव से 12 किलोमीटर साइकल चलाकर मेहगांव तक पढ़ाई करने जाना पड़ता है बारिश हो या तेज धूप या फिर कोहरे का कहर, रोशनी ने हर मौसम से डटकर मुकाबला करते स्कूल पहुँचती। रोशनी के पिता पुरुषोत्तम भदौरिया किसान हैं और बेटी की इस उपलब्धि से गौरवान्वित हैं। रोशनी भदौरिया आगे अपनी पढ़ाई करके आईएएस बनना चाहती है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने अपने मुख्य पृष्ठ पर सराहना की है।  

कॅरोना लॉकडाउन

ये सामान्य समय नहीं है, मानव जाति वैश्विक संकट का सामना कर रही है, शायद हमारी पीढ़ी का सबसे बड़ा संकट ? अगले कुछ हफ्तों में लोगों और सरकारों ने जो निर्णय लिए हैं वे शायद आने वाले वर्षों के लिए दुनिया को आकार देंगे। वे न केवल हमारी स्वास्थ्य प्रणाली बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था, राजनीति और संस्कृति को भी आकार देंगे। हमें जल्दी और निर्णायक रूप से कार्य करना होगा। हमें अपने कार्यों के दीर्घकालिक परिणामों को भी ध्यान में रखना चाहिए। विकल्पों के बीच चयन करते समय, हमें अपने आप से न केवल यह पूछना चाहिए कि तत्काल खतरे को कैसे दूर किया जाए, बल्कि यह भी कि तूफान के गुजरते ही हम किस तरह की दुनिया में बस जाएंगे। हां ! तूफान गुजर जाएगा, मानव जाति बच जाएगी, हम में से अधिकांश अभी भी जीवित होंगे - लेकिन हम एक अलग दुनिया में निवास करेंगे। कई अल्पकालिक आपातकालीन उपाय जीवन की स्थिरता बन जाएंगे। यह आपात स्थिति की प्रकृति है की वह  प्रक्रियाओं को तेजी से आगे बढ़ाते हैं। ऐसे निर्णय जो सामान्य समय में विचार-विमर्श के वर्षों में ले सकते हैं, कुछ ही घंटों में पारित हो जाते हैं। अपरिपक्व और यहां तक कि खत

उटंगन नदी किनारे जन्मी भदावर की दास्तान

उटंगन   नदी , यमुना की सहायक नदी है। ये राजस्थान व उत्तर प्रदेश राज्यों में बहती है , धौलपुर ज़िले में इसका कुछ भाग राजस्थान व उत्तर प्रदेश की राज्य सीमा निर्धारित करता है। यह राजस्थान में करौली ज़िले में अरावली पहाड़ियों में उत्पन्न होती है और अंत में जाकर भदावर बाह के रिठाई गांव में यमुना से संगम होता है। पौराणिक कथाओं में महाभारत में अर्जुन के बाण से उत्पन्न राजस्थान की बाणगंगा नदी उत्तरप्रदेश के भदावर बाह के " पड़ावहाट " पिनहाट में उटंगन नदी के नाम से जानी जाती है इस नदी के अन्य नाम है जैसे गम्भीर और घोड़ा पछाड़ नदी भी हैं। उटंगन   नदी   पर   अरनौटा   गांव   में   पुल उटंगन नामकरण   यमुना तथा उटंगन के किनारे का उपजाऊ हिस्सा कछार कहलाता है। उटंगन एक प्रकार की घास होती है , यह घास इस नदी के कछारों में बहुतायत में उत्पन्न होती है जो तिनपतिया के आकार की लगती है पर इसमें चार पत्तियाँ होती हैं। इसका साग भी खाया जाता है , यह