उटंगन नदी, यमुना की सहायक नदी
है। ये राजस्थान व
उत्तर प्रदेश राज्यों में बहती है,
धौलपुर ज़िले में इसका कुछ
भाग राजस्थान व उत्तर प्रदेश
की राज्य सीमा निर्धारित करता
है। यह राजस्थान में
करौली ज़िले में अरावली पहाड़ियों
में उत्पन्न होती है और
अंत में जाकर भदावर
बाह के रिठाई गांव
में यमुना से संगम होता
है। पौराणिक कथाओं में महाभारत में
अर्जुन के बाण से
उत्पन्न राजस्थान की बाणगंगा नदी
उत्तरप्रदेश के भदावर बाह
के "पड़ावहाट" पिनहाट में उटंगन नदी
के नाम से जानी
जाती है इस नदी
के अन्य नाम है
जैसे गम्भीर और घोड़ा पछाड़
नदी भी हैं।
उटंगन नदी पर अरनौटा गांव में पुल |
उटंगन नामकरण
यमुना तथा उटंगन के
किनारे का उपजाऊ हिस्सा
कछार कहलाता है। उटंगन एक
प्रकार की घास होती
है, यह घास इस
नदी के कछारों में
बहुतायत में उत्पन्न होती
है जो तिनपतिया के
आकार की लगती है
पर इसमें चार पत्तियाँ होती
हैं। इसका साग भी
खाया जाता है, यह
साग - शीतल, मलरोधक, त्रिदोषघ्न, हल्का कसौला पर स्वादिष्ट होता
है और ज्वर, श्वास
तथा प्रमेह आदि को दूर
करता है। इस घास,
साग या बूटी के
अन्य नाम -सुनिषक, शिरिआरि,
चौपतिया, गुठुवा ,सबुनि, साल्सबुनि, विषखपरा और तुसना आदि
है। किसान
के लिए एक प्रकार
की घास जो गेहूँ
के खेत में उत्पन्न
होकर फ़सल को बहुत
हानि पहुँचाती है। उटंगन घास
की इसके कछार में
बहुतायत के कारण ही
इस नदी को बाह
में उटंगन नदी कहा जाने
लगा।
भदावर
में तीन नदिया है यमुना और
उसकी दो सहायक चम्बल
और उटंगन, बाह के रिठाई
गांव में मिलती है
यमुना-उटंगन और इटावा के
भरेह में मिलती है
यमुना-चम्बल। आगरा जिले
में सात तहसीलें हैं,
जैसे कि किरोली, खेरागढ़,
आगरा, एत्मादपुर, फिरोजाबाद, फतेहाबाद और बाह। तहसील
बाह सबसे बड़ी है
और ये तहसील लगभग
एक द्वीप है, जो उत्तर
में उटंगन और जुमना द्वारा
शेष जिले से कटी
है, यमुना,
चंबल और उटंगन जिले
से होकर बहती है।
आगरा से भदावर बाह
के प्रवेश मार्ग पर उटंगन नदी
पर अरनौटा गांव में पुल
बना हुआ है किताब
"सेठ अचलसिंह अभिनन्दन ग्रंथ" के अनुसार उटंगन
नदी पर 1955 में सार्वजनिक निर्माण
विभाग द्वारा अरनौटा गांव में पुल
का निर्माण तात्कालिक लोकसभा सदस्य सेठ अचल सिंह
ने करवाया था। उन्होंने आगरा
लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया
और कांग्रेस दल के सदस्य
थे। उटंगन नदी आज विलुप्ति
की कगार पर है।
भदावर
का प्रथम राज्य भदौरा
राय पिथौरा के बारहवे पुत्र
चंद्रपाल देव थे उन्होंने
अजमेर से आकर यमुना
किनारे चंद्रवार नगर बसाया और
इन्हीं चंद्रपाल देव के पुत्र
भादूराणां ने उटंगन नदी
किनारे अरनौटा के पास भदौरा
ग्राम बसाया। भादूराणां और उनकी राजधानी
भदौरा से ही भदौरिया
शब्द की उत्पत्ति जोड़ी
जाती है। भादूराणां (सन
832 से 842 ) ने सामरिक द्रष्टि
से एक किला बनवाया,
उटंगन नदी तट पर
बसा ये नगर व
दुर्ग - भदौरागढ़ के नाम से
प्रसिद्द हुआ, भदौरागढ़ को अपनी राजधानी
बना कर राज्य का
विस्तार किया राजा शल्यदेव
(सन 1194 से 1208) राजधानी भदौरागढ़ पर मोहम्मद गौरी
के सेनापति कुतबुद्दीन एबक ने विशाल
सेना ले कर हमला
किया और विषम युद्ध
में दोनों तरफ़ नर्संघार हुआ,
इस नर्संघार में भदौरिया नरेश
शल्यदेव के वीरगति को
प्राप्त होने पर, सेना
संग्राम में टिक न
सकी भदौरागढ़ दुर्ग भारी पत्थर फेकने
वाले यन्त्रों से विध्वँस कर
दिया गया यह युद्ध
इतना भयँकर था कि अरनोटा
नदी का जल ढाई
कोस तक रक्त रजिँत
व धूल धूसरित हो
गया था। भदौरागढ़ के
युद्ध मेँ, हिंदू स्वतंत्रता
का अस्तित्व दांव पर लगा
था और ये सभी
क्षेत्रों में हिंदू प्रतिरोधों
का अंतिम बड़ा प्रतिरोध था
इसके बाद ही में कुतुबुद्दीन ऐबक
की दिल्ली के सिंहासन पर
कब्जे और भारत में
मुस्लिम शासन की नींव
पड़ी और ये विषम
समय (सन 1208 से 1228) भदावर
राज्य की शासन व्यवस्था
क्रम भंग का समय
रहा।