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Showing posts from April, 2014

भदावरी कहावते - 2

महाभारत काल से ही भदावर अपनी भौगोलिक स्तिथि के करण भील-डाकुओं का स्थाई निवास बना रहा था । महाभारत (मूसलपर्व 15/22) में कथा आती है की कृष्ण के प्रस्थान के बाद बटेश्वर-सौरिपुर में बचे-कुछे बच्चो व स्त्रियों को लेकर जब धनुर्धर अर्जुन जा रहे थे तो भीलों ने अर्जुन को स्त्रियों सहित लूट लिया था । अर्जुन का गांडीव भी स्त्रियों- बच्चो की रक्षा ना कर सका था गांडीव धारी अर्जुन की ये पराजय लोकजीवन आज भी नहीं भुला है । भदावर में आज भी कहावत कही जाती है - " सबे दिन रहत न एक समान भीलन लूटीं गोपिका बेई अर्जुन बेई बान " प्राचीन भदावरी कहावतें जिनके गूढ अर्थ को अगर समझा जाये तो वे अपने अपने अनुसार बहुत ही सुन्दर कथन और जीवन के प्रति सावधानी को उजागर करती थी। इसी प्रकार से एक कहावत इस प्रकार से कही जाती है ।

भदावरी कहावते - 1

भ दावरी कहावते अपने पैने, प्रभावशाली और सशक्त संकेतों से इस छेत्र के जनसमुदाय का युगों–युगों से मार्ग निर्देशन करती आ रही है।  ये कहावते सोए को जगाती है, आलसियों को झकझोरती है, मूर्खों को समझाती है बच्चों को दुलारती है धूतों को डांटती है, बेईमानों पर उंगली उठाती है पथभ्रष्टों को हड़काती है और पाखण्ड पर कठोर प्रहार करती है । सुन्दर नीति से कही गयी उक्ति को सूक्ति कहते है। ऐसी ही उक्तिंयां लोक व्यवहार और जन सामान्य के प्रयोग मे आकर लोकोक्तियों या कहावते बन जाती है। किसी तथ्य के खण्डन या पुष्टि अथवा विरोध या समर्थन के लिए रामवाण बन जाती है। लोक कण्ठों पर थिरकती कहावते लोक व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी होती है और कहावतो का विशिष्ट लाक्षणिक अर्थ ही ग्रहण किया जाता है। भदावर में "खीर मे सांझे महेरी में न्यारे ।।" रहने वालों को तुरन्त परख लिया जाता है। लोक व्यवहार को परखती ये कहावते आगे बढती है तो छोटा परिवार सुखी परिवार होता है लेकिन जहां इस नियम का पालन नही होता है उस घर की लक्ष्मी दीवाल तोड़कर निकल जाती है। "सास बहु की एकई सोर, लच्छो कड़ गई पाखौ फोर।। &q