Skip to main content

भदावरी कहावते - 1

दावरी कहावते अपने पैने, प्रभावशाली और सशक्त संकेतों से इस छेत्र के जनसमुदाय का युगों–युगों से मार्ग निर्देशन करती आ रही है।  ये कहावते सोए को जगाती है, आलसियों को झकझोरती है, मूर्खों को समझाती है बच्चों को दुलारती है धूतों को डांटती है, बेईमानों पर उंगली उठाती है पथभ्रष्टों को हड़काती है और पाखण्ड पर कठोर प्रहार करती है ।

सुन्दर नीति से कही गयी उक्ति को सूक्ति कहते है। ऐसी ही उक्तिंयां लोक व्यवहार और जन सामान्य के प्रयोग मे आकर लोकोक्तियों या कहावते बन जाती है। किसी तथ्य के खण्डन या पुष्टि अथवा विरोध या समर्थन के लिए रामवाण बन जाती है। लोक कण्ठों पर थिरकती कहावते लोक व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी होती है और कहावतो का विशिष्ट लाक्षणिक अर्थ ही ग्रहण किया जाता है।

भदावर में "खीर मे सांझे महेरी में न्यारे ।।" रहने वालों को तुरन्त परख लिया जाता है। लोक व्यवहार को परखती ये कहावते आगे बढती है तो छोटा परिवार सुखी परिवार होता है लेकिन जहां इस नियम का पालन नही होता है उस घर की लक्ष्मी दीवाल तोड़कर निकल जाती है। "सास बहु की एकई सोर, लच्छो कड़ गई पाखौ फोर।। " असमर्थता को व्यक्त करती यह व्यंजना कितनी पैनी है "कढ़ी तो मुरत नाई बरियन पै हाथ पसारत।। " जब किसी से सहयोग की अपेक्षा हो और वह हानि करने पर उतारू हो जाय तो स्थिति कुछ इस तरह बनती है कि "माछी बीड़ारन बैठारे, संगे खान लगे ।।"

भदावरी कहावतें अपने में बहुत ही मजेदार और लच्छेदार मानी जाती है, कुछ कहावतें हम भी पुराने जमाने से सुनते आये है और वे अपने आप ही याद हो गयीं है, यह कहावतें ठेठ भदावरी भाषा में कही जाती है।

कल्लो आयीं कल्लो आयीं तेल के दिना, नाचि गयीं कूदि गयीं ले गयीं गुना ॥
भदावरी शादी-विवाह में पूडी बनाई जाती थी और साथ में मीठी वस्तु के लिये गोल चूडी के आकार का "गुना" बनाया जाता था, जो औरत बिना बुलाये शादी के घर में संगीत में शामिल होकर नाच गाना करने के बाद जाती थी, तो उन्हे मनुहार के रूप में केवल गुना ही दिया जाता था, पूडी और गुना केवल अपने जान पहिचान या बुलाये गये मेहमानों को ही दी जाती थी, उसके लिये कहावत कही जाती थी !

पूरी पे गुना धरकें देओ ॥
अर्थात : जब किसी के उपकार का बदला उस से बढ़ कर किया जाता है तो ये कहावत कही जाति है ईट का जवाब पत्थर से के रूप में भी इसका उपयोग होता है.

कमला के बाग में कमलगटा, कमला ठाडी लहें लठा ॥
अर्थात : किसी के घर पर कोई फ़सल अच्छी हो जाती थी, और दूसरों के घर पर वह फ़सल नही होती थी, तो अक्सर गांव में एक दूसरे से मांग कर अपना काम चलाया जाता है, लेकिन किसी किसी के घर का एक दाना भी बाहर नही जा सकता था, क्योंकि उस घर की मुखिया औरत हमेशा पहरेदारी में रहती थी, इस स्थिती के लिये कहावत कही जाती थी,यानी कमला के बाग में कमलगट्टे हैं, लेकिन उन कमलगट्टों को लेकर कैसे आयें वहां तो कमला लट्ठ लेकर खडी है।

Popular posts from this blog

भदौरिया : गोत्रचार-शाखाचार

भ दौरिया वंश के गोत्रचार शाखाचार इस प्रकार है  वंश : अग्निवंशी   राजपूत गोत्र : वत्स शाखा   : राउत , मेनू , तसेला , कुल्हिया , अठभईया रियासत : चंद्रवार ,  भदावर ,  गोहद ,  धौलपुर ईष्ट देव : बटेश्वरनाथ (महादेव शिव) ईष्ट देवी : भद्रकाली ( भदरौली व् अमहमदाबाद) मंत्र : ॐ ग्लौं भद्रकाल्यै नमः नगाड़ा : रणजीत निसान : केसरिया वृक्ष : पीपल पक्षी : परेवा (कबूतर) वेद : श्याम तीर्थ : बटेश्वर घाट : विठूर लोकगीत : लंगुरिया , सपरी शस्त्रीय संगीत : ग्वालियर घराना

भदौरिया कुटुम्ब

भदौरिया एक प्रशिद्ध और राजभक्त कुल है इनका नाम ग्वालियर के ग्राम भदावर पर पड़ा भदौरिया साम्राज्य का उदय  चम्बल घाटी के खारों  में बड़ी ही विसम पर्तिस्थियों में हुआ ।  उनके गढ़ पर समय समय पर सय्यिद राजाओ का आक्रमण होता रहा । भदौरिया हमेशा ही दिल्ली के सुलतान से बगावत करते रहे, वे अपने शौर, उग्र सव्भाव और स्वाधीनता प्रेम के लिए जाने जाते है।  इस कुटुम्ब के संस्थापक मानिक राय (720-794), अजमेर को मना जाता है, उनके पुत्र राजा चंद्रपाल देव (चंद्रवार के राजा 794-816) ने "चंद्रवार" रियासत की स्थापना की और वहां एक किले का निर्माण कराया। चंद्रवार 1208 तक भदौरियो के अधिपत्य में रहा । मुगलों ने बाद में इस का नाम फिरोजाबाद  कर दिया। चन्द्रपाल देव के पुत्र राजा भदों राव (816-842) लोकप्रिय नाम "भादूराणा" ने भदौरागढ़ नामक नगर बसाया (इसका वर्तमान नाम पिनहाट है ) और उन्होने 820 में उत्तंगन नदी के तट पर किले का निर्माण कराया । 'भदौरा' के निवासी भदौरिया नाम जाने जाने लगे। राव कज्जल देव (1123-1163) ने 1153 में हथिकाथ पर कब्जा किया और अपनी राज्य की सीमओं को आज की बाह तहसील तक ब

भदावरी ग्रामीण कहावतें: व्यक्तिगत गुणों की परख और मजेदार कहावतें !

भदावरी ग्रामीण कहावतें पुराने बुजुर्गों की कहावतें में कमाल की परख मिलती है मनुष्य की शारीरिक रचना से उसके व्यतिगत गुणों को परखती ये कहावत सौ में सत्तर आदमी पर सटीक बैठती है ये हिंदी कहावत अभद्र कहावतें की श्रेणी की लग सकती है इस कहावत  में गूढ़ अर्थ के साथ कुछ शरारत भी नजर आती है और ये कहावत मजेदार कहावतें हो सकती हैं : सौ में सूर सहस में काना, सवा लाख में ऐचकताना, ऐंचकताना करे पुकार, कंजा से रहियो हुशियार, जाके हिये न एकहु बार, ताको कंजा ताबेदार, छोट गर्दना करे पुकार, कहा करे छाती को बार, अथार्त : एक अंधा सौ नेत्र वालो के बराबर व एक काना हजार के बराबर होता है। अंधे के प्रति स्वाभाविक दया भाव के कारण अँधा अगर चाहे तो सौ लोगो को छल सकता है, उसी प्रकार काने व्यक्ति में हजार लोगो को चलने की कुव्वत होती है। जब ध्यान केंद्रित करना होता है तो एक आँख बंद की जाती है, जैसे बन्दुक से निशाना लगाने के लिए, ये गुण काने में स्वाभाविक रूप में विधमान होता है तो वह हजार लोगो को अपने अनुसार चला सकता है। बात काटने वाले व्यक्ति को ऐंचकताना कहा जाता है, इस प्रकार का व्यक्ति अनुभवी होता है और सभी क्षेत्रो क