भदावरी कहावते अपने पैने, प्रभावशाली और सशक्त संकेतों से इस छेत्र के जनसमुदाय का युगों–युगों से मार्ग निर्देशन करती आ रही है। ये कहावते सोए को जगाती है, आलसियों को झकझोरती है, मूर्खों को समझाती है बच्चों को दुलारती है धूतों को डांटती है, बेईमानों पर उंगली उठाती है पथभ्रष्टों को हड़काती है और पाखण्ड पर कठोर प्रहार करती है ।
सुन्दर नीति से कही गयी उक्ति को सूक्ति कहते है। ऐसी ही उक्तिंयां लोक व्यवहार और जन सामान्य के प्रयोग मे आकर लोकोक्तियों या कहावते बन जाती है। किसी तथ्य के खण्डन या पुष्टि अथवा विरोध या समर्थन के लिए रामवाण बन जाती है। लोक कण्ठों पर थिरकती कहावते लोक व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी होती है और कहावतो का विशिष्ट लाक्षणिक अर्थ ही ग्रहण किया जाता है।
भदावरी कहावतें अपने में बहुत ही मजेदार और लच्छेदार मानी जाती है, कुछ कहावतें हम भी पुराने जमाने से सुनते आये है और वे अपने आप ही याद हो गयीं है, यह कहावतें ठेठ भदावरी भाषा में कही जाती है।
कल्लो आयीं कल्लो आयीं तेल के दिना, नाचि गयीं कूदि गयीं ले गयीं गुना ॥
भदावरी शादी-विवाह में पूडी बनाई जाती थी और साथ में मीठी वस्तु के लिये गोल चूडी के आकार का "गुना" बनाया जाता था, जो औरत बिना बुलाये शादी के घर में संगीत में शामिल होकर नाच गाना करने के बाद जाती थी, तो उन्हे मनुहार के रूप में केवल गुना ही दिया जाता था, पूडी और गुना केवल अपने जान पहिचान या बुलाये गये मेहमानों को ही दी जाती थी, उसके लिये कहावत कही जाती थी !
पूरी पे गुना धरकें देओ ॥
अर्थात : जब किसी के उपकार का बदला उस से बढ़ कर किया जाता है तो ये कहावत कही जाति है ईट का जवाब पत्थर से के रूप में भी इसका उपयोग होता है.
कमला के बाग में कमलगटा, कमला ठाडी लहें लठा ॥
अर्थात : किसी के घर पर कोई फ़सल अच्छी हो जाती थी, और दूसरों के घर पर वह फ़सल नही होती थी, तो अक्सर गांव में एक दूसरे से मांग कर अपना काम चलाया जाता है, लेकिन किसी किसी के घर का एक दाना भी बाहर नही जा सकता था, क्योंकि उस घर की मुखिया औरत हमेशा पहरेदारी में रहती थी, इस स्थिती के लिये कहावत कही जाती थी,यानी कमला के बाग में कमलगट्टे हैं, लेकिन उन कमलगट्टों को लेकर कैसे आयें वहां तो कमला लट्ठ लेकर खडी है।