महाभारत काल से ही भदावर अपनी भौगोलिक स्तिथि के करण भील-डाकुओं का स्थाई निवास बना रहा था । महाभारत (मूसलपर्व 15/22) में कथा आती है की कृष्ण के प्रस्थान के बाद बटेश्वर-सौरिपुर में बचे-कुछे बच्चो व स्त्रियों को लेकर जब धनुर्धर अर्जुन जा रहे थे तो भीलों ने अर्जुन को स्त्रियों सहित लूट लिया था । अर्जुन का गांडीव भी स्त्रियों- बच्चो की रक्षा ना कर सका था गांडीव धारी अर्जुन की ये पराजय लोकजीवन आज भी नहीं भुला है ।
भदावर में आज भी कहावत कही जाती है -
"सबे दिन रहत न एक समान भीलन लूटीं गोपिका बेई अर्जुन बेई बान"
"न नुन्हाडा में नौन, न तिल्हाडा में तेल॥"
अर्थात: नमक के घडे में नमक नही है और तेल के घडे में तेल नही है। जिन घरों में मूल वास्तु न होने के बाद भी अपने को समृद्ध बताने की कोशिश की जाती थी, उनके लिये ये कहावत कही जाति थी
"ऊँची नीची धोती पहिने, हम जानी कोई क्षत्री, जाति को धनुआ॥"
अर्थात : धोती पहिने व्यक्ति को देख लगा कोई छत्रिय है पर वो जाति का धनुक निकला - जो लोग अपने को बन-ठन कर व ताव दिखाती मुच्छों को उमेठ कर चलते थे पर वास्तव में जिन्हे धोती तक पहिनने की कला नही आती थी, वे केवल दिखावा करते थे, ऐसे लोगो के लिए ये कहावत कही जाती थी
"करनी ना करतूत, आन गली की छूत॥"
जिन लोगों के लडकों की शादियां बिना दहेज की होती थी, उनकी बहुओं को ताना मारने के लिये ये कहावत कही जाती थी,"करनी ना करतूत, आन गली की छूत" अर्थात कुछ न दिया न लिया, केवल दूसरी गली की छूत घर में आ गयी।
"ऊँची नीची धोती पहिने, हम जानी कोई क्षत्री, जाति को धनुआ॥"
अर्थात : धोती पहिने व्यक्ति को देख लगा कोई छत्रिय है पर वो जाति का धनुक निकला - जो लोग अपने को बन-ठन कर व ताव दिखाती मुच्छों को उमेठ कर चलते थे पर वास्तव में जिन्हे धोती तक पहिनने की कला नही आती थी, वे केवल दिखावा करते थे, ऐसे लोगो के लिए ये कहावत कही जाती थी
"करनी ना करतूत, आन गली की छूत॥"
जिन लोगों के लडकों की शादियां बिना दहेज की होती थी, उनकी बहुओं को ताना मारने के लिये ये कहावत कही जाती थी,"करनी ना करतूत, आन गली की छूत" अर्थात कुछ न दिया न लिया, केवल दूसरी गली की छूत घर में आ गयी।
"पुरखनि परिपाटी, नरकाघाटी ॥"
अर्थात : पूर्वजों से चली आ रही नालियों की दशा नरक जैसी है। भदावर के घरों से निकले पानी की नालियां गलियों में निकलती थी, चिकनी मिट्टी होने के कारण और कचडे के मिल जाने से बदबू भी मारती थी, उन नालियों वाले स्थान को पुरखनि परिपाटी कहा जाता था अर्थात पूर्वजों से चली आ रही नालियों की दशा नरक जैसी है।