भदावर - महाभारत काल में प्राचीन भद्रावर्त राज्य था । महत कांतार (हतकांत) विंध्याटवी (अटेर) तथा विंध्यकानन (भिंड) इसके एतिहासिक साक्षी हैं । पांडव काल में भद्रावर्त राज्य एक समृद्ध गणराज्य था । यहाँ के क्षत्रिय विपुल साधन सम्पत्र थे यहाँ के राजकुमार बहुत सा रत्न धन सुवर्ण लेकर युधिष्ठर यज्ञ में उपस्थित हुए थे और उसे यज्ञ की भेंट किया ।
अथर्वद के गोपाल तापिनी उपनिषद में गोपाल के प्रिय दो बनों में भद्रवन का उल्लेख है जो यमुना के तट पर था । द्वेबने स्त: कृष्णवनं भद्रवनं- पुण्यानि पुष्य तमानि तेष्वेव देवा स्तिष्ठन्ति सिद्धा: सिद्धिं प्राप्ता: ई वेदों के अनुसार- 'भदंकर्णेभि श्रृणुयाम देवा:' - देवों की वाणी "भद्रश्रव" भदावर की बोली थी ।
“मथुरामंडल में बसै, देश भदावर ग्राम। ऊखल तहाँ प्रसिद्ध महि, क्षेत्र बटेश्वर नाम।।
बटेश्वर जिसे भदावर के काशी के नाम से जाना जाता है। आज से कई सदियों पूर्व त्रेता युग में शूर सैनपुर के नाम से जाना जाता था। यह विशालकाय भूखण्ड जिसकी धार्मिक तरंगे युगो-युगों से मानव को अपनी ओर आकृषित करती रही हैं। दूसरी ओर, भदावर वीर पुरुषों की, सुरक्षित आश्रय स्थली भी रही है। महर्षि वाल्मीकि आश्रम यमुना तट पर ग्राम भाउपुरा इटावा, ऋषिवर दुर्वासा बटेश्वर, सन्त प्रवर तुलसी ग्राम पारना आगरा, ऋषि विभांडक भिंड जिनके नाम से है। सती अनसुईया, शबरी एवं मृत्युजंय शिव की समाधि स्थली बटेश्वर ही है मुनिधन्य पुत्र अमलकंठ के राजा निष्ठसैन, जिन्होने भगवान नैमीनाथ से दीक्षा प्राप्त करके यही सिद्धियां प्राप्त की थी। इसके अलावा भगवान ऋषिभदेव, पाशर््वनाथ व भगवान महावीर ने अपने पद रज से इस भदावर भूमि को पवित्र किया है।
द्वापुर काल में महाभारत के नायक श्री कृष्ण की पैत्रिक भूमि सुरसैनपुर - वटेश्वर कृष्ण के पितामह सूरसैन महाराज की राजधानी थी, उनके पुत्र बसुदेव की यह जन्म स्थली होने का गौरव भी रखती है। आपात परस्थितियों में भगवान कृष्ण का जन्म कंस के कारागार मथुरा में हुआ था, इसी कारण कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा कही जाती है। व्यवहारिक एवं मान्यताओं के अनुसार कृष्ण का जन्म स्थान तो उनकी पैत्रिक भूमि सूरसैनपुर-बटेश्वर ही कही व मानी जानी चाहिए। भागवत पुराण के अनुसार बसुदेव की बारात सूरसैनपुर से मथुरा गयी थी। यही कृष्ण के पिता बसुदेव व बलभदृ एवं कुन्ती का जन्म हुआ था। इस प्रकार सूरसैन प्रदेश के संस्थापक भगवान राम व शत्रुघ्न व उनके पुत्र शूरसैन थे।
हरिषेण कृत प्राचीन कथाकोष जिसमे १५७ कथायें हैं जिनमें चाणक्य, शकटाल, भद्रबाहु, वररुचि, स्वामि कार्तिकेय आदि ऐतिहासिक पुरुषों के चरित्र भी हैं। एक कथा के अनुसार भद्रबाहु भाद्रपद (भदावर) में ही रहे थे बटेश्वर के समीप जरासंध द्वारा ध्वंस किये गये संकुरीपुर (संकर्षणपुर) के खण्डहर मीलों तक फैले पड़े हैं ।
बटेश्वर के घाट में प्रसिद्ध घाट आज भी कंश कगार के नाम से जाना जाता है और भदावर के भदौरिया महाराजो ने यहाँ १०८ मंदिरों का निर्माण कर इस पवित्र स्थान को तीर्थ में बदल दिया।