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ब्रहमाणी देवी मंदिर

इटावा के कस्बा जसवन्तनगर से लगभग 15 किलोमीटर दूर सुदूरवर्ती बीहडी़ क्षेत्र में स्थित बलरई  रेलवे स्टेशन से 5 किलोमीटर दूर पर स्थित है ब्राह्मणी देवी का मंदिर। ब्रहमाणी देवी के मन्दिर के प्रति श्रद्धालुओं में गहरी आस्था है। मारकण्डेय पुराण में दुर्गा के 108 स्वरूपों का वर्णन हैं  इनमें से एक स्वरूप ब्राह्मणी देवी का है। नवरात्रि के दिनों में यहाँ पूजा-अर्चना और दर्शन करना अत्यन्त शुभ और फलदायक माना जाता है।

हजारों श्रद्वालु चैत्र और क्वार की नवरात्रि में ब्रहमाणी मैया के दरबार में हाजिरी लगाने पहुंचते हैं।  यमुना नदी के किनारे बीह़डो़ के बीच मौजूद यह मंदिर आदिकालीन शक्ति पूजा का स्मरण कराता है। ब्रहमाणी देवी हंस पर सवार हैं और हाथ में कमण्डल धारण किये हुये सरस्वती का ही प्रतिरूप प्रतीत होती हैं। ब्रहमाणी देवी को ब्रहमा की आदिशक्ति के रूप में भी मान्यता दी जाती है। जनश्रुतियों के अनुसार यमुना पार के भदावर राजवंश के तत्कालीन शासक राजा मानसिहं को इस मूर्ति के जमीन में दबे होने का स्वप्न आया था और उस मूर्ति को निकलवाकर वर्तमान मंदिर के स्थान पर स्थापित कराया गया भदावर में परम्परा चली रही थी कि यहां पर दत्तक पुत्र ही राज्य करता था कभी किसी राजा के कोई अपनी संतान का जन्म नहीं हुई थी। भदावर के राजा मानसिहं ने देवी ब्राह्मणी के मंदि में निवास करके जब नौ दि का ब्रत किया तब उनकी पत्नी शिशोधनी के पुत्र रत्न का जन्म हुआ और तब भदावर- नौगांव रियासत की रानी शिशोधिनी देवी ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया। ब्राह्मणी देवी की कृपा से उत्पन्न पुत्र का नाम राजा रिपुदमन सिहं रखा गया।  
मंदि परिसर में एक दर्जन छोटे और बड़े बुर्ज हैं प्रवेश द्वार छोटा है तथा गर्भगृह तक जाने के लिये झुककर जाना पड़ता है। ब्राह्मणी देवी मंदि के संदर्भ में प्रचलि लोकगीत के अंश बर मानी मैया अपने आप में यहां की स्थापना के सन्दर्भ में मूल प्रेरणा हैं। भदावर में ब्राह्मणी देवी मंदि की बड़ी प्रसिद्धि है - चैत्र और शारदीय नवरात्रि पर सैकडो़ श्रद्धालु झंडा-नेजा चढ़ाने आते हैं और बड़ी संख्या में भक्त गाते बजाते हुये और लेट-लेट कर परिक्रमा लगाते हुये माँ के दरबार तक पहुंचते हैं।

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