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पिनाहट : कब तक पुल से ढहोगे, बाढ़ में कब तक बहोगे..

दावर के बाशिंदे बरसो से, पिनाहट-घाट पर एक स्थिर पुल का सपना सँजोये हुए थे,  इस सपने में रंग भरने के लिए 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने, चंबल-नदी-पुल की नींव रखी तो भदावर बासियों को विकास की रौशनी की आशा थी, पर लगभग 25 साल बाद भी कोई कार्य नहीं हुआ है। 


पिनाहट-पुल का निर्माण मध्य-प्रदेश,उत्तर-प्रदेश एवं केन्द्र-सरकार की साझा परियोजना है,  कई बार पुल निर्माण केलिए सर्वेक्षण हो चुके है, लेकिन सेतु-निर्माण अधर में लटका रहा है। चंबल घाटी के वाशिंदे, पुल-निर्माण के सपने पूरे होने का इंतजार कर रहे हैं। मामले के तथ्यों को देखा जाये तो, क्षेत्र के लोगों के साथ धोखा किया गया हउन्हे हर चुनाव के समय " हवाई-पुल " परोसा जाता रहा है
 
इसी क्रम में उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनाव 2012 में बाह विधानसभा से, महाराज भदावर - राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह को विजयी बनाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जनता का आह्वन किया और सपा-सरकार के विजयी होने पर, पिनाहट-पुल का अतिशीघ्र निर्माण का वादा किया लेकिन सपा की बहुमत की सरकार व राजा भदावर के परिवहन मंत्री बनने पर भी जनता, मुख्यमंत्री के वायदे पुल निर्माण के सपने के साकार होने के इन्तजार में है
जनता के विकास के सपने, मौजूदा पन्टून-पुल पर हिचकोले ले रहे है विभिन्न सरकारों की नीतियों में समन्वय व् स्थानीय अधिकारियो की उदासीन सोच के कारन विकास की डोर थमी हुई है और जनता साईकल पर है अब तो पुल-निर्माण सेतु-समुंद्रम लगने लगा है विकास के टूटी डोर की टोह लेते हुए सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस जी ने इस दिशा में एक नयी चेतना जगाई थी पर उनके प्रयास भी, सत्ता-पक्ष की उदासीनता की वजह से, फुलझड़ियों की तरह चमक बिखेर कर खत्म हो गए। यहाँ एक महत्वपूर्ण बात कहना चाहूँगा कि पत्राकारिता, सरकार और आवाम के बीच एक पुल का काम करती है, उसका शशक्त व् प्रभावशाली होना जरूरी है। 

जो बीत गई सो बात गई...बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेहु। कब तक पुल से ढहोगे, बाढ़ में कब तक बहोगे... यहाँ खड़े होकर आज हम एक पुल गढ़े... भावनाओ में बहता हुआ मैं...उस पुल पर हिचकोले लेने लगता हूं तभी मां उठा लेती वो स्वेटर, कहते हुए कि पुराना हो गया है इसे उधेड़ कर फिर बुन देती हूँ .. क्या इतना आसान हो सकता है पुनः निर्माणहम-दोनों संवादों के पुल पर खड़े थे,  और नीचे खामोशी की नदी बह रही थी .... 

दोस्तों ! सब्र का पुल टूट न जाये, बातो के पुल बाँधना छोड़ आओ अब नदी पाटी जाये, हम सब बनाये एक असरदार संपर्क-सेतुजो जगाये उनको जो हमें हर चुनाव में विकास का लॉलीपॉप पकड़ा कर फिर गहरी नींद में सो जाते है। 

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