विजय सिंह चौहान एक उत्कृष्ट ऑल राउंड एथलीट थे जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं से देश के लिए कई पुरस्कार जीते। उन्होंने एशियाई खेलों और एशियाई चैम्पियनशिप में डेकैथलॉन में स्वर्ण पदक जीते और उन्हें 1973 में मनीला एशियाई चैम्पियनशिप में अपने शानदार प्रदर्शन के बाद 'आयरन मैन ऑफ एशिया' घोषित किया गया। उन्होंने सात मौकों पर राष्ट्रीय डेकैथलॉन रिकॉर्ड को फिर से लिखा। उनका रिकॉर्ड 7378 अंक था जो छह साल तक नहीं टुटा था।
विजय सिंह चौहान ने लक्ष्मीबाई नेशनल कॉलेज ऑफ फिजिकल एजुकेशन, ग्वालियर में करण सिंह के मार्गदर्शन में अपने एथलेटिक करियर की शुरुआत की। 400 मीटर से लेकर छोटे बाधाओं तक और लंबी कूद से लेकर जवेलिन थ्रो तक एथलेटिक स्वर्धाओं में वह बहुत अच्छे थे। उन्होंने उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की 1968 में इंटर यूनिवर्सिटी चैंपियनशिप में 400 मीटर (47.3), 110 मीटर बाधा (15.9), लांग जंप (6.3 9 मीटर), और भाला थ्रो (204 फीट) में स्वर्ण पदक जीते। उन्हें 'सर्वश्रेष्ठ ऑल राउंड एथलीट' की उपाधि मिली। वह 1970 में कटक राष्ट्रीय चैंपियनशिप में एक उत्कृष्ट डिकैथलीट के रूप में उभरे। उन्होंने 1972 के राष्ट्रीय चैंपियनशिप में 7092 अंक का राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया।
उनका पहला अंतर्राष्ट्रीय अनुभव उपयोगी नहीं था। 1970 में एडिनबर्ग राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लेने के लिए चुने गए उन्हें मांसपेशियों को खींचने के कारण पहले दिन प्रतियोगिता छोड़नी पड़ी। इसके बाद उन्होंने 1971 में कुआलालंपुर में मलेशियाई एथलेटिक में हिस्सा लिया और 110 मीटर बाधाओं और डेकैथलॉन में शानदार प्रर्दशन कर दोहरा स्वर्ण पदक जीता।
विजय सिंह चौहान ने 1972 के म्यूनिख ओलंपिक खेलों में अच्छा प्रदर्शन किया। दुनिया के सर्वश्रेष्ठ के खिलाफ प्रतिस्पर्धा में उन्होंने 7378 अंकों के आंकड़े संकलित किए -ये अजेय रिकॉर्ड अभी भी उनके नाम पर है। 1973 में मनीला में एशियाई एथलेटिक चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक लिया तो उन्हें 'एशिया का आयरन मैन' भी घोषित किया गया था। फिर 1974 तेहरान एशियाई खेलों में उनके एथलेटिक करियर के सबसे महत्वपूर्ण क्षण आए। शानदार फॉर्म प्रदर्शित करते हुए उन्होंने लगभग म्यूनिख ओलंपियाड प्रदर्शन से मेल खाया और 7375 अंक के साथ स्वर्ण पदक जीता। इस प्रक्रिया में उन्होंने एक नया गेम रिकॉर्ड बनाया और जापान के अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जूनिची ओनिज़ुका को 81 अंक से पराजित किया।
विजय सिंह चौहान ने कुछ दिन टाटा की टेल्को, जमशेदपुर की कार्य किया और फिर यूपी सरकार में खेल निदेशक के कार्यालय में शामिल हो गए जहां वह संयुक्त निदेशक पद से रिटायर हुए। वह एक योग्य कोच भी रहे और उन्होंने हिंदी में खेलों पर कुछ किताबें लिखी हैं।
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