अटेर का क़िला,भदावर का एक विशाल-शानदार, मध्ययुगीन किला है। चंबल नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है जो अपनी महिमा के साथ-साथ अपनी भव्यता के लिए विख्यात रहा है अटेर का क़िला चम्बल नदी के किनारे एक ऊंचे स्थान पर स्थित है। महाभारत में जिस देवगिरि पहाड़ी का उल्लेख आता है ये किला उसी पहाड़ी पर स्तिथ है। इसका मूल नाम देवगिरि दुर्ग है। अटेर का किला जलपोत के आकर का है यहाँ भी बटेश्वर की तरह चम्बल की तरह बांध बना कर उसे उत्तर की और मोड़ा गया था।
Ater Fort |
इस किले का निर्माण विभिन्न
भदौरिया राजाओं के शासनकाल में सम्पन्न कराया गया। किले के निर्माण का प्रारंभ सन्
1498 में राजा करन सिंह ने कराया किन्तु इतिहास कारों के अनुसार एक शिलालेख के आधार
पर सन् 1644 में राजा बदनसिंह ने इस किले का निर्माण कराया था। किन्तु राजा
महासिंह व राजा बखत सिंह के समय में निर्माण पूर्ण हुआ। इस किले का निर्माण भी राजनीतिक व
सामरिक सुरक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण था।
यह किला एक विशाल क्षेत्र में
फ़ैला है, यह उत्तर
से दक्षिण तक 700 फुट और
पूर्व से पश्चिम तक 325 फुट में है, इसमें चार मुख्य प्रवेश द्वार है
राजसी प्रवेश द्वार के मेहराब, मुगल शैली की बहुमंजिला इमारत है किले के भीतर एक सात-मंजिला गुम्मट है। इस किले में राजा का महल, रानी महल, महाद्वार, खूनी दरबाजा, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, सतखण्डा, रानी का बाग, रनिवास एवं स्थानागार प्रमुख है।
इस किले के अन्दर हिन्दू एवं मुगल शैली का स्थापत्य एवं नक्काशी है। दीवारों पर
हिन्दू शैली के भित्त चित्र है।
आज समय के थपेड़ो को सहता हुआ यह
अपने पूर्व गौरव को बहाल रखने की जद्दोजहत में दिखाई पड़ता है। यह ककैया ईट और
चूने से बना किला एक
सामरिक गढ़ रहा है। राजपूतों, मुगलों और मराठों के बीच कई लड़ाइयों के साक्षी इस किले के ढहते भवन, अब बीते युग की गाथाओं, महिमा, किंवदंतियों
और लोककथाओं को ह्रदय में समेटे, चंबल घाटी पर एक सजग-प्रहरी की भाति खड़ा है।