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भदौरिया के भाले को, चम्बल ने झुककर नमन किया ॥

भदौरिया इस भदावर भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है ।
भदौरिया आजादी का, अपराजित काल विधायक है ॥
वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य ।
आदर्शों के दुर्गम पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य ॥
भदौरिया की खुद्दारी, भदावर की पूँजी है ।
ये वो धरती है जहाँ कभी, गोलियों की आवाजें गूंजी है ॥
नस नस मे जागा था, 
विक्रमी तेज बलिदानी का ।
जय बटेश्वर का ज्वरा जगा , जागा था खड्ग भद्रकाली का ॥
लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था ।
भदावर का महासमर, मजहब से बढ़कर बोला था ॥
भदौरिया की कर्मशक्ति, चम्बल का पावन नीर हुई ।
भदौरिया की देशभक्ति, पथ्थर की अमिट लकीर हुई ।
समरांगण मे अरीयो तक से, इन यौद्धा ने छल नही किया ।
सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नही किया ॥
मिट्टी पर मिटने वालो ने, अब तक जिसका अनुगमन किया ।
भदौरिया के भाले को, चम्बल ने झुककर नमन किया ॥
प्रण की गरिमा का सूत्रधार, भदावर धरा सत्कार हुआ ।
भदौरिया का भदावर की, धरती पर जयजयकार हुआ ॥


 ~ सुखदेवसिंह भदौरिया" गाँव:कैंजरा, तहेसील: बाँह  जिला : आगरा
सारांश :
एयर मार्शल राकेश कुमार सिंह भदौरिया 

भदौरिया भदावर के इतिहास मे वीरता और स्वभिमान के पर्याय है। वे ऐक कठिन और उथल-पुथल भरे कालखंड मे हुऐ थे , जब मुगलो कि सत्ता समूचे भारत पर छाई हुई थी और मुग़ल सम्राट अपनी विशिष्ट कार्य शैली के कारण 'महान' कहा जा सकता है । लेकिन भदौरियों ने उसकी 'महानता' के पीछे छिपी उसकी साम्राज्यवादी आकांक्षा के विरूद्ध युद्ध मे उतरे, इसलिए उन्होंने उसकी अधीनता स्वीकार नही की । परिणामस्वरूप मुग़ल उनके विरूद्ध युद्ध उतरे । इस प्रक्रिया मे भदौरिया ने जिस वीरता, स्वभिमान और त्यागमय जीवन को वरण किया , उसी ने उन्हे ऐक महान लोकनायक और वीर पुरुष के रुप मे सदा -सदा के लिये भदावर इतिहास मे प्रतिष्ठित कर दिया है ॥

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