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पिलुआ वाले महावीर - इटावा

यहां पर महाबली हनुमान जी की प्रतिमा लेटी हुई है और लोगों की माने तो ये मूर्ति सांस भी लेती है और भक्तो के प्रसाद भी खाती है। यहां की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर में महाबली हनुमान जी की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठित नहीं है। कहा जाता है यहां हनुमान जी खुद जीवित रूप में विराजमान हैं।  

महाभारत के एक कथानक के अनुसार भीम-हिडिम्बा यमुना के किनारे विहार करने निकले थे कि रास्ते में हनुमान जी अपनी पूंछ फैलाये लेटे हुए आराम कर रहे थे,भीम ने प्रणाम किया और रास्ते से पूंछ हटाने का अनुरोध किया। हनुमानजी ने कहा  बेटा मेरी पूंछ पीछे कर दो,और निकल जाओ। सोलह हजार हाथियों की ताकत रखने वाले भीम हनुमानजी की पूछ तिलभर भी नहीं हटा पाये और हार गये। इतने में हनुमान जी ने कहा,  बेटा! प्यास लगी है, पानी पिला दो। भीम यमुना से कलश भर कर लाते रहे,और पिलाते रहे। पानी पिलात-पिलाते भीम थक गये,लेकिन बजरंगबली तृप्त नहीं हुए। पतिव्रता हिडिम्बा ने अपने हाथ से यमुना जल भरकर कलश लाई और सश्रद्धा निवेदन किया- जेठजी ! आप अपनी अनुजवधू के हाथ से जल ग्रहण कर तृप्त हो जाओ। (हनुमान और भीम पवनपुत्र हैं लिहाजा दोनों भाई हुए ) हिडिम्बा के जल पिलाते ही बजरंगवली तृप्त होकर बैठ गये और पूंछ समेट ली, बोले बेटी ! दंभ ही अनर्थ का कारण होता है दंभ शक्ति को क्षीर्ण कर देती है, ईश्वरीय प्रेरणा से अपने छोटे भाई का दंभ दूर करना था। मेरा आशीर्वाद है - विजयी हो। यह कहकर बजरंगबली फिर लेट गये। भीम-हिडिम्बा ने श्रद्धापूरक प्रणाम किया और आगे बढ़ गये। 

कालांतर में राजा सुमेर सिंह चैहान के वंशज राजा प्रतापसिंह चैहान ने अपनी राजधानी इटावा की बजाय निकटवर्ती प्रतापनेर स्थानान्तरित की, तब राजा को स्वप्न हुआ कि हनुमान जी कह रहे थे मेरी दिव्य मूर्ति टीले से निकालो। खुदाई हुई लेटे हुए हनुमान की प्रतिमा मिली जिसे पिलुआ के पेड़ की जड़ पर स्थापित कर दिया गया। तीसरी पीढ़ी कि राजा लोकेन्द्र सिंह ने भव्य मंदिर बनवाया। प्राचीनकाल में प्रतापनेर के राजा हुकुमतेजप्रताप सिंह चैहान को सपना हुआ कि मै पिलुआ की जड़ से जिस मुद्रा में प्रकट हुआ हूं, उसी मुद्रा में मेरी पूजा-सेवा की व्यवस्था करो। राजा ने परीक्षा के तौर पर राज्य भर का दूध मंगाकर हनुमान जी को पिलाया लेकिन वे तृप्त नहीं हुए।

 सिद्ध स्थल के रूप में पिलुआ वाले महावीर की प्रतिष्ठा लगातार बढ़ती गई। मान्यता है कि जो भी व्यंक्ति अहंभाव का त्याग कर भक्ति-भाव से लड्डू, बूंदी, दूध आदि का भोग लगाता है, चोला चढाता है उसकी प्रत्येक मनोकामना पूरी होती हैं। यहां बुढ़वा मंगल को लक्खी मेला लगता है और बसन्त ऋतु में मारुति महायज्ञ भी होता हैं। मंदि‍र परि‍सर में सैकड़ों भक्त श्रद्धा भाव से हर रोज आते रहते हैं।
Road to Pilua Mahavir Mandir, Pratapner, Etawah, Utterpradesh

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