मोटे अनाज ही भदावर में खाये जाते थे जिन्हें कालान्तर में भुला दिया गया, अब दुनियाँ फिर इनकी तरफ लौट रही है जई का इस्तेमाल भदावरवासी करते थे भटुला एक भदावरी मल्टीग्रेन ब्रेड (रोटी) थी अब कोई इसे नहीं खाता है, इसकी कहानी भी दिलचस्प है।
Multigrain Bread - Bhatula |
भदौरिया इस युग (लगभग सन 1640) में चम्बल के बीहड़ो में बसे हुए थे और जनता का खान-पान मोटे अनाज ज्वर-बाजरा तक ही सीमित था अरहर, चना ,जई और मुंग से बनी रोटी को "भटुला" या गांकर कहा जाता था यह अपनी कठोरता के लिए कुप्रसिद्ध है, और जो लोग बेहतर अन्न उगाने व खरीदने में समर्थ थे वे बिरले ही इसे खाते थे । ऐसा कहा जाता है की भटुला ही भदौरिया के उत्कर्ष का कारण रहा था ये कहानी अनर्गल व हास्यास्पद लगती है, लेकिन समीपत्व भदावर में सामान्यतः इस पर विश्वाश किया जाता है।
भदावर महाराजा गोपाल सिंह, सम्राट मुहमद शाह से मिलने उनके दरबार में पहुचे, महाराजा की आंखें बहुत बड़ी बड़ी थी, इतनी बड़ी की सम्राट का भी ध्यान आकर्षित कर लिया, सम्राट ने पूछा की आपकी आंखें इतनी बड़ी कैसे हुई ? भदावर महाराजा ने अपने परिहस चातुरी का परिचय देते हुए, जवाब दिया की उनके जिले मैं मोठे अनाज के अलावा कुछ नही पैदा होता है, और भटुला लीलने कि निरंतर तनन के कारण ही उनकी आंखें बाहर निकल आई है सम्राट उनकी हाजिर जवाबी से प्रसन्न हुआ, और उन्हे एक अन्य परगना बाह प्रदान किया जहाँ बेहतर अन्न ( गेहूँ ) उगाये जा सकता था ।