भदवारी एक उन्नत देशी भैंस नस्ल है, जिसे प्रमुख्ता से उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा जिलों और मध्य प्रदेश के भिंड और मुरैना जिलों में दूध उत्पादन के लिए पाला जाता है। डेरी व्यवसाय में देशी घी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है और देश में उपलब्ध दूध की सर्वाधिक मात्रा देशी घी में परिवर्तित की जाती है। हमारे देश में भैसों की 12 नस्लों को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व नस्ल पंजीकरण समिति द्वारा मान्यता प्राप्त है। भदावरी उनमें से महत्वपूर्ण नस्ल है, जो दूध की अत्याधिक वसा प्रतिशत के लिए प्रसिद्ध है। भदावरी भैंस के दूध में औसतन 8.0% वसा पाई जाती है जो देश में पाई जाने वाली भैंस की नस्लों से अधिक है। भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी में भदवारी भैंस संरक्षण एवं संर्वधन परियोजना के तहत रखी गयी भैंसों के समूह में भदावरी भैंस के दूध में अधिकतम 11-12 प्रतिशत तक वसा पाई गई है। भदावरी भैंस को देश की सबसे अच्छी नस्ल है। यह देश की इकलौती देशी नस्ल है जिसके दूध में अधिकतम फैट होता है।
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Bhadawari buffalo |
भदावरी भैंस-पहचान एवं विशेषताएं
भदवारी नस्ल के पशुओं में ग्रामीण क्षेत्रों में भदावरी, भूरी, जनेऊ वाली और सुअरगोड़ी आदि नामों से जाना जाता है। भदवारी नस्ल की भैंस का शारीरिक आकार मध्यम, रंग ताबिया तथा शरीर पर बाल कम होते है। ये भैंस तिकोने आकार लिए होती है आगे से पतली और पीछे मोटी और इसकी टांगें छोटी और घुटने से नीचे का हिस्सा हल्के सफेद रंग का होता है। सिर के अगले हिस्से पर आँखों के ऊपर वाला भाग हलकी सफेदी लिए हुए होता है। गर्दन के निचले भाग पर दो सफेद धारियां होती है जिन्हें ग्रामीण कंठमाला या जनेऊ कहते है। अयन का रंग गुलाबी होता है। अयन कूप अल्प विकसित और थन नुकीले होते हैं। सींग तलवार के आकार के होते हैं । इस नस्ल के वयस्क पशुओं का औसतन वजन 300-400 किलो होता है। छोटे आकार तथा कम वजन की वजह से इनकी आहार आवश्यकता भैंसों की अन्य नस्लों मुख्यतया मुर्रा, नीली रावी, जाफरावादी, मेहसाना आदि की तुलना के काफी कम होती है जिससे इन्हें कम संसाधनों में गरीब पशुपालक और कृषकों द्वारा सरलता से पाला जा सकता है। इस नस्ल के पशु विषम परिस्थितियों में रहने की क्षमता रखते है तथा अति गर्म और आर्द्र जलवायु में कुशलता से रह सकते है। दूध में अत्यधिक वसा, मध्यम आकार और जो भी मिल जाए उसको खाकर अपना गुजारा कर लेने के कारण इसकी खाद्य परिवर्तन क्षमता अधिक है। इस नस्ल के पशु कई बीमारियों के प्रतिरोधी होते है और इनके बच्चों के मृत्यु दर भैसों के अन्य नस्लों की तुलना में अत्यंत कम रहती है। अन्य भैंस नस्लों की तुलना में रोग और गर्मी के प्रभावों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होने के लिए जाने जाते हैं, जो उन्हें पालतू जानवरों के लिए आदर्श बनाता है।
भदावरी भैंस-प्राप्ति स्थल
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व इटावा, आगरा, भिण्ड, मुरैना तथा ग्वालियर जनपद के कुछ हिस्सों को मिलाकर जमींदारी राज्य था जिसे भदावर कहते थे। भैस की यह नस्ल भदावर राज्य में विकसित हुई और इसका नाम भदावरी पड़ा गया। वर्तमान में इस नस्ल की भैसें आगरा की तहसील बाह, भिण्ड तथा अटेर और इटावा के बढ़पुरा, चकरनगर, ओरैय्या तथा जालौन जिलों में यमुना तथा चम्बल के दोआब में पायी जाती है। भदावरी भैंस संरक्षण एवं सर्वधन परियोजना में भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी में भदावरी नस्ल की भैंसों पर शोध कार्य के उद्देश्य से पाला जा रहा है। इस परियोजना में भदावरी नस्ल के संरक्षण एवं सुधार के लिए उत्तम सांडों का विकाश किया जा रहा है तथा उनका वीर्य हिमीकरण करके भविष्य में इस्तेमाल के लिए सुरक्षित रखा जा रहा है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य प्रजनन के लिए उच्च कोटि के सांड तथा उनका वीर्य किसानों को उपलब्ध कराना है जिससे ग्राम स्तर पर भदावरी नस्ल का संरक्षण एवं उनके उत्पादन स्तर में सुधार किया जा सके।
भदावरी भैंस-उत्पादन स्तर
भदावरी मुर्रा भैसों की तुलना में दूध तो थोड़ा कम देती है किन्तु दूध से वसा का अधिक प्रतिशत, विषम परिस्थितियों में रहने की क्षमता, बच्चों का कम मृत्यु दर और कम आहार आवश्यकता आदि गुणों के कारण यह नस्ल काफी लोकप्रिय है भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान, झांसी में परियोजना के अंतर्गत भदावरी भैसों की उत्पादकता को जानने के विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है। भदावरी भैंस औसतन 5 से 6 किलो दूध प्रतिदिन देती हैं और अच्छे पशु प्रबंधन द्वारा 8 से 10 किलो प्रतिदिन तक दूध प्राप्त किया जा सकता है। भदावरी भैसें एक ब्यांत 290 दिन में 1200 से 1800 किलो दूध देती है। भदावरी A2 MILK के लिए अति उत्तम रहती है।
उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि देशी घी एवं दूध के लिए भदावरी एक बहुत ही उन्नत नस्ल है इस नस्ल की भैंसों को विषम क्षेत्रों में जहां आवागमन के साधन कम है दूध को बेचने या संरक्षित करने की सुविधाएं नहीं है आसानी कम लागत में पाला जा सकता है। गाँवों में दूध बेचने की सुविधा न होने पर, दूध से घी निकालकर महीने में एक या दो बार शहर में बेचा जा सकता है। घी एक ऐसा दुग्ध उत्पाद है जिसको बिना खराब हुए वर्षों तक संग्रक्षित रखा जा सकता है। इस समय जब शुद्ध देसी घी के दाम असमान छू रहे है तो पशुपालक किसान भाई घी बेचकर अच्छा मुनाफा प्राप्त कर सकते है।