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भदावरी कहावते -4

"नंगा कों मिली पीतर, बाहर धरे की भीतर ॥"
अर्थात: ये कहावत इंसानी दिखावा परस्त व्यवहार को उजागर करती है किसी गरीब को जब पीतल के वास्तु मिल जाती है या कोई कीमती वास्तु प्राप्त होती है तो वह निश्चित है नहीं  कर पता की लोगो को दिखने के लिए उस वस्तु को किस जगह रक्खे।

"नंगन के गड़ई भाई, बार-बार हगन गई ॥"
एक गॉंव के दरिद्र व्‍यक्ति, जिसके पास कुछ भी नहीं था उसको अचानक एक गड़ई या लोटा -जल रखने व़ह परेशानी में था कि अब कैसे गॉंव के लोगों को यह पात्र दिखाकर अपनी धाक जमाये । तो वह बार- का पात्र मिल जाता है। अब चूँकि वह व्‍यक्ति तो दरिद्रता की वज़हसे ही प्रसिद्ध था, अत: बार पात्र में जल भरकर शौच केलिए जाता, जिससे लोगों को पता चल जाए कि दरिद्र के पास एक पात्र है।

अर्थात किसी मनुष्‍य के पास जब कोई वस्‍तु आती है, तो वह दुनिया को उस वस्‍तु को दिखाने के सौ-सौ बहाने ढूंढता है। अब देखिए, वह दरिद्र व्‍यक्ति जिसके पास खाने-पीने की व्‍यवस्‍था तक नहीं है, वह पात्र लेकर बार-बार शौच के लिए जाता है ? सिर्फ़ प्रदर्शन के लिए !

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भदौरिया : गोत्रचार-शाखाचार

भ दौरिया वंश के गोत्रचार शाखाचार इस प्रकार है  वंश : अग्निवंशी   राजपूत गोत्र : वत्स शाखा   : राउत , मेनू , तसेला , कुल्हिया , अठभईया रियासत : चंद्रवार ,  भदावर ,  गोहद ,  धौलपुर ईष्ट देव : बटेश्वरनाथ (महादेव शिव) ईष्ट देवी : भद्रकाली ( भदरौली व् अमहमदाबाद) मंत्र : ॐ ग्लौं भद्रकाल्यै नमः नगाड़ा : रणजीत निसान : केसरिया वृक्ष : पीपल पक्षी : परेवा (कबूतर) वेद : श्याम तीर्थ : बटेश्वर घाट : विठूर लोकगीत : लंगुरिया , सपरी शस्त्रीय संगीत : ग्वालियर घराना

भदौरिया कुटुम्ब

भदौरिया एक प्रशिद्ध और राजभक्त कुल है इनका नाम ग्वालियर के ग्राम भदावर पर पड़ा भदौरिया साम्राज्य का उदय  चम्बल घाटी के खारों  में बड़ी ही विसम पर्तिस्थियों में हुआ ।  उनके गढ़ पर समय समय पर सय्यिद राजाओ का आक्रमण होता रहा । भदौरिया हमेशा ही दिल्ली के सुलतान से बगावत करते रहे, वे अपने शौर, उग्र सव्भाव और स्वाधीनता प्रेम के लिए जाने जाते है।  इस कुटुम्ब के संस्थापक मानिक राय (720-794), अजमेर को मना जाता है, उनके पुत्र राजा चंद्रपाल देव (चंद्रवार के राजा 794-816) ने "चंद्रवार" रियासत की स्थापना की और वहां एक किले का निर्माण कराया। चंद्रवार 1208 तक भदौरियो के अधिपत्य में रहा । मुगलों ने बाद में इस का नाम फिरोजाबाद  कर दिया। चन्द्रपाल देव के पुत्र राजा भदों राव (816-842) लोकप्रिय नाम "भादूराणा" ने भदौरागढ़ नामक नगर बसाया (इसका वर्तमान नाम पिनहाट है ) और उन्होने 820 में उत्तंगन नदी के तट पर किले का निर्माण कराया । 'भदौरा' के निवासी भदौरिया नाम जाने जाने लगे। राव कज्जल देव (1123-1163) ने 1153 में हथिकाथ पर कब्जा किया और अपनी राज्य की सीमओं को आज की बाह तहसील तक ब...

भदावरी ग्रामीण कहावतें: व्यक्तिगत गुणों की परख और मजेदार कहावतें !

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