"नंगा कों मिली पीतर, बाहर धरे की भीतर ॥"
अर्थात: ये कहावत इंसानी दिखावा परस्त व्यवहार को उजागर करती है किसी
गरीब को जब पीतल के वास्तु मिल जाती है या कोई कीमती वास्तु प्राप्त होती है तो वह
निश्चित है नहीं कर पता की लोगो को दिखने के लिए उस वस्तु को किस जगह रक्खे।
"नंगन के गड़ई भाई, बार-बार हगन गई ॥"
एक गॉंव
के दरिद्र व्यक्ति, जिसके पास कुछ भी नहीं था उसको
अचानक एक गड़ई या लोटा -जल रखने व़ह परेशानी
में था कि अब कैसे गॉंव के लोगों को यह पात्र दिखाकर अपनी धाक जमाये । तो वह बार- का पात्र मिल
जाता है। अब चूँकि वह व्यक्ति तो दरिद्रता की वज़हसे ही प्रसिद्ध था, अत: बार पात्र में जल भरकर शौच केलिए जाता, जिससे लोगों को पता चल जाए कि दरिद्र के पास एक पात्र है।
अर्थात किसी मनुष्य के पास जब कोई
वस्तु आती है, तो वह दुनिया को उस वस्तु को दिखाने के सौ-सौ बहाने
ढूंढता है। अब देखिए, वह दरिद्र व्यक्ति जिसके पास खाने-पीने की व्यवस्था तक नहीं है, वह पात्र लेकर बार-बार शौच के लिए जाता है ? सिर्फ़ प्रदर्शन के लिए !