Skip to main content

Posts

Showing posts from 2017

चौंसठ योगनी मन्दिर, मितावली मुरैना

भारतीय संसद की वास्तुकला इसी चौसठ योगिनी मंदिर से प्रेरित है। चम्‍बल गूढ़ व रहस्‍यमय तंत्र शक्तियों का खजाना अपने सीने में समेटे हुये है। मुरैना के मितावली ग्राम में स्थित चौंसठ योगनी मन्दिर का तंत्र शास्‍त्र में अत्‍यधिक महिमा है। कहा जाता है की भारतीय संसद की वास्तुकला इसी चौसठ योगिनी मंदिर से प्रेरित है। जी हाँ ये वही मुरैना है, जो गजक की मिठास और बीहड़ों की भयावहता के लिए प्रसिद्ध है। भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक़, इस मंदिर को ग्यारवी सदी में बनवाया गया था। इसे इकंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस गोलाकार  मंदिर की ऊंचाई भूमि तल से 300 फीट है और इसकी त्रिज्या 170 फीट है मध्य में एक खुला हुआ मण्डप है। इसका निर्माण तत्कालीन प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने किया था। यह मंदिर गोलाकार है। इसी गोलाई में बनी चौंसठ कोठरियों में एक-एक योगिनी स्थापित थी। मंदिर के मध्य मुख्य परिसर में एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। यहाँ भगवान शिव के साथ चौंसठ देवी योगिनी की मूर्तियां भी थीं, इसलिए इसे चौंसठ योगिनी शिवमंदिर भी कहा जाता है। देवी की कुछ मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं औ...

भरेश्वर महादेव मंदिर

भरेश्वर महादेव मंदिर  भारेश्वर महादेव मंदिर प्राचीन काल से आध्यात्मिक ज्ञान एवं तपस्या का केंद्र रहा है। महात्मा तुलसीदास भी इस मंदिर में कुछ समय रहे थे।मान्यता है कि द्वापर में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने मंदिर में पूजा अर्चना की थी। इटावा जनपद में भारेश्वर महादेव मंदिर से वि‍शाल और प्राचीन मंदि‍र दूसरा नहीं भरेह का इति‍हास तो वक़्त के पंछि‍यों सा उड़ गया लेकि‍न अपने पद चि‍न्ह यहां छोड़ गया प्रतीत होता है।  इटावा से 58 किलोमीटर उदी चकरनगर मार्ग पर भरेह के बीहड़ में 'अपवित्र' चंबल का निर्मल जल और 'पवित्र' यमुना के गंदले जल का संगम होता है। यहाँ के बाद चम्बल-यमुना में विलीन हो जाती और अब यमुना के नाम से ही प्रयाग में गंगा के साथ विलीन होती है। चम्बल-यमुना के इस संगम तट पर बीहड़ में एक ऊंचे टीले पर स्थित इस मंदिर से शानदार नजारा दिखाई पड़ता है। सीढ़ि‍यों से मंदि‍र के गर्भग्रह की ओर जाने के लि‍ए सीढ़ि‍यों की संख्या एक सौ आठ बताई जाती है। यहाँ प्राण प्रतिष्ठित विशाल शिवलिंग श्रद्धालुओं का मन बरबस मोह लेता है। यह मंदिर बेहद प्राचीन है।   वास्तुशिल्प में बलुआ ...

पिलुआ वाले महावीर - इटावा

यहां पर महाबली हनुमान जी की प्रतिमा लेटी हुई है और लोगों की माने तो ये मूर्ति सांस भी लेती है और भक्तो के प्रसाद भी खाती है। यहां की सबसे खास बात यह है कि इस मंदिर में महाबली हनुमान जी की प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठित नहीं है। कहा जाता है यहां हनुमान जी खुद जीवित रूप में विराजमान हैं।   महाभारत के एक कथानक के अनुसार भीम-हिडिम्बा यमुना के किनारे विहार करने निकले थे कि रास्ते में हनुमान जी अपनी पूंछ फैलाये लेटे हुए आराम कर रहे थे,भीम ने प्रणाम किया और रास्ते से पूंछ हटाने का अनुरोध किया। हनुमानजी ने कहा  बेटा मेरी पूंछ पीछे कर दो,और निकल जाओ। सोलह हजार हाथियों की ताकत रखने वाले भीम हनुमानजी की पूछ तिलभर भी नहीं हटा पाये और हार गये। इतने में हनुमान जी ने कहा,  बेटा! प्यास लगी है, पानी पिला दो। भीम यमुना से कलश भर कर लाते रहे,और पिलाते रहे। पानी पिलात-पिलाते भीम थक गये,लेकिन बजरंगबली तृप्त नहीं हुए। पतिव्रता हिडिम्बा ने अपने हाथ से यमुना जल भरकर कलश लाई और सश्रद्धा निवेदन किया- जेठजी ! आप अपनी अनुजवधू के हाथ से जल ग्रहण कर तृप्त हो जाओ। (हनुमान और भीम पवनपुत्र हैं लिहाजा...

टिक्सी मंदिर - धूमेश्वर महादेव मंदिर, इटावा

टिक्सी मंदिर -  धूमेश्वर महादेव मंदिर, इटावा, उत्तर प्रदेश में स्थित है। इस विशिष्ट हिंदू मंदिर में स्थापित शिवलिंग की स्थापना पांडवों के गुरु महर्षि धौम्य ने की थी। यमुना नदी के किनारे छिपैटी घाट है इसी घाट के पास में धूमेश्वर महादेव का मंदिर है। मंदिर के प्रवेश द्वार से ही सीढ़ियाँ शुरू होती और आप को प्रथम ताल पर ले जाती ही यहाँ से यमुना जी का छिपैटी घाट सुन्दर दृश्य मिलता है ये सीढ़ियाँ आगे दुसरे तल पर मंदिर में पहुँचती हैं जहाँ प्राचीन धूमेश्वर शिवलिंग स्थापित है इसी ताल पर मंदिर के पीछे इटावा का विहंगम दृश्य बेहद मनोहारी दिखाई देता है। Tiksi Temple मंदिर के इसी तल से दूसरी तरफ सीढ़ियाँ नीचे उतरती हैं जहां महर्षि धौम्य का आश्रम था और अब उनकी समाधी है। वनवास के दौरान पांडवो ने धौम्य को अपने पुरोहित के रुप में स्वीकार किया था। ये आश्रम महाभारत कालीन पांचाल क्षेत्र का सबसे बड़ा अध्ययन केन्द्र था। यहां दूर-दूर से विद्यार्थी और राजघराने के राजकुमार शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। उनके शिष्य गुरु के प्रति इतना आदर एवं श्रद्धा रखते थे कि वे कभी उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं करते थे।...

टुईयाँ वाला मंदिर : शिकोहाबाद

टुईयाँ वाला मंदिर एक प्राचीन शिव मंदिर है मूल निवासियों के अनुसार शिकोहाबाद के मेला बाग़ में स्थितः यह मंदिर लगभग 200 वर्ष पुराना है यहाँ स्वंमभू शिवलिंग है यहाँ का वातावरण शांत,आध्यात्मिकता,ध्यान केंद्रित करता है जनमानस का विश्वास है की शिव इस मंदिर में निवास करते हैं और एक साँप भी मंदिर के परिसर में आधी रात को घूम करता है। इस मंदिर की सबसे दिलचस्प बात यह है कि मंदिर पर भगवान शिव के नाम 108 नाम हैं। इस मंदिर परिसर में चार और मंदिर हैं जिनमे  श्री गणेश जी, श्री हनुमान जी, माता दुर्गा जी और मां गायत्री देवी जी विराजमान हैं।

Trekking to Chambal - चम्बल सफारी

होली पर दिल्ली से आई   # TeamGearless   चम्बल बीहड़ में उतरी और सरोखीपुरा से   # चम्बल   नदी तक   # Trekking   की विडियोग्राफी की गयी विडिओ ऑडियो के साथ देखे - चम्बल सफारी की एक झलक ! हथकांत भदौरियों की चार चौरासियों में से एक है अन्य तीन चौरासी अकौडा, कनेरा, मावई है। हथकांत मध्यकाल में रवितनया-जमुना एवं विन्ध्याकुमारी-चम्बल के मध्य विषम खरो, गहन-वन के बीच एक समृद्ध नगर था। जिसे हस्तिक्रान्तिपुरी के नाम से जाना जाता था बाद में ये हथकांत के नाम से जाना गया। हथकांत अपने गहन सघन कान्तारों के लिए प्रसिद्ध रहा है।  # महाभारत  काल में हथकांत क्षेत्र को ‘महत् कान्तार’ (गहन-वन, अथवा दुर्गम-पथ) कहा गया हैं। यह वीर-प्रसवनी भूमि ऊँचे-नीचे कगारों-टीलों पर प्रकृति की बिछाई हुई विपुल वन-राशि से सुशोभित अति रमणीक और सुहावनी है। भदावर की प्राचीनतम राजधानी हथकांत ही थी, जो पिछले कुछ समय तक, चम्बल नदी तट पर खण्डहर भव्य-भवनों व देवालयों का एक जनशून्य-उजाड़ ग्राम के रूप में दश्यु गिरोहों की आश्रय स्थली बनी रही थी।

भदौरिया के भाले को, चम्बल ने झुककर नमन किया ॥

भदौरिया इस भदावर भूमि के, मुक्ति मंत्र का गायक है । भदौरिया आजादी का, अपराजित काल विधायक है ॥ वह अजर अमरता का गौरव, वह मानवता का विजय तूर्य । आदर्शों के दुर्गम  पथ को, आलोकित करता हुआ सूर्य ॥ भदौरिया की खुद्दारी, भदावर की पूँजी है । ये वो धरती है जहाँ कभी, गोलियों की आवाजें गूंजी है ॥ नस नस मे जागा था,  विक्रमी तेज बलिदानी का । जय बटेश्वर का ज्वरा जगा , जागा था खड्ग भद्रकाली का ॥ लासानी वतन परस्ती का, वह वीर धधकता शोला था । भदावर का महासमर, मजहब से बढ़कर बोला था ॥ भदौरिया की कर्मशक्ति, चम्बल का पावन नीर हुई । भदौरिया की देशभक्ति, पथ्थर की अमिट लकीर हुई । समरांगण मे अरीयो तक से, इन यौद्धा ने छल नही किया । सम्मान बेचकर जीवन का, कोई सपना हल नही किया ॥ मिट्टी पर मिटने वालो ने, अब तक जिसका अनुगमन किया । भदौरिया के भाले को, चम्बल ने झुककर नमन किया ॥ प्रण की गरिमा का सूत्रधार, भदावर धरा सत्कार हुआ । भदौरिया का भदावर की, धरती पर जयजयकार हुआ ॥  ~ सुखदेवसिंह भदौरिया" गाँव:कैंजरा, तहेसील: बाँह  जिला : आगरा

Ground Report : Chambal

डकैतों के लिए मशहूर यमुना चम्बल के बीहड़ के मंगलाकाली मंदिर से लाइव