1924 में शुरू हुई रुदमुली गांव ( बाह आगरा ) की सैनिक परम्परा के रुप में रणबीर सिंह भदौरीया - भारतीय अधिकारियों के पहले बैच में चुने अधिकारियों में से एक थे, जिन्हें बहादुरी के लिए मिलिटरी क्रॉस प्रदान किया गया जोकि ब्रिटिशों का दूसरा सबसे बड़ा बहादुरी पुरस्कार है। चीनी आकर्मण का मुहतोड़ जवाव दिया और पाकिस्तान के द्वारा कब्जे में लिए आरएस पूरा सेक्टर को पुनः आपने कब्जे में लिया। संयुक्त शांति बल के तत्वाधान में बतौर मिलिटरी आब्जर्वर लेबनान में तैनात रहे 1968 में सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर पद पर हुए। ब्रिगेडियर रणवीर सिंह भदौरिया ने 1962 के युद्ध में चीन के दाँत खट्टे कर दिए थे और 1965 में पाक सेना को जम्मू कश्मीर के आर एस पूरा सेक्टर से खदेड़ कर दोबारा कब्ज़ा किया था। इन की शहादत को नमन करता युद्ध स्मारक रुदमुली गांव में है | इस गांव ने 1924 में रणबीर सिंह भदौरिया, एमसी (मिलिटरी क्रॉस) के रूप में "प्रथम भारतीय बैच ऑफ आर्मी ऑफिसर" दिया, जो बाद में ब्रिगेडियर के पद से सेवानिवृत्त हुए।
ब्रिगेडियर रणबीर सिंह भदौरिया |
सैनिक परंपरा के निर्वाह का अदुतीय उदाहरण तब प्रस्तुत हुआ जब राजपूत रेज़ेमेंटल सेण्टर फतेहगढ़ की परेड के कमांडेंट, उस समय कर्नल रणबीर सिंह भदौरिया को उनके चाचा सूबेदार मेजर जगत सिंह भदौरिया ने सलामी दी थी और परेड के बाद भतीजे ब्रिगेडियर साहब ने सूबेदार मेजर चाचा के पैर छुए, सैन्य परम्परा और पारवारिक परम्परा का साथ साथ निर्वाह - सेना की एक ही बटालियन में चाचा-भतीजा का ये अनोखा रिश्ता था। उनके पिता भी सेना में थे - सूबेदार विहारी सिंह भदौरिया । रुदमुली गांव के घर-घर की यही कहानी है जहां पिता सिपाही थे, बेटा जे.सी.ओ था और पोता एक अधिकारी हुआ।
ब्रिगेडियर रणबीर सिंह भदौरिया |
रुदमुली गांव में लगभग 300 घर हैं। इस गांव में भारतीय सेना के अधिकारियों, जेसीओ और जवानों की अधिकतम संख्या है और ये सैनिक परंपरा अब भी जारी है। #भदावरगौरव