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Showing posts from July, 2015

नौगवां किला

राजा बदन सिँह ने अपने दूसरे पुत्र भगवत सिँह को 12 गाँव की जागीर दी जो नौगवां   व चित्रा के कुवँर कहलाये इन्हीँ के द्धारा नौगवां   मेँ एक बड़ी गढ़ी का निर्माण कराया गया कालान्तर मेँ भिण्ड तथा अटेर पर सिन्धिया ने छल से अधिकार कर लिया तथा राजा प्रताप सिँह के अधिपत्य मेँ केवल बाह तहसील का भूभाग रह गया चम्बल नदी तक इनकी सीमा रही तो राजा प्रताप सिँह ने नौगवां   निवास किया नौगवां   गढ़ी को विस्तारित करवा के किले का रूप दे दिया इसमेँ कई झरोखे व बुर्ज बनवा कर भव्य रूप प्रदान क िया तब से उनके उत्तराधिकारी उस समय तक निरन्तर नौगवां   किले मेँ निवास करते रहे जब तक कि   भदावर   हाउस आगरा मेँ उन्होँने निवास प्रारम्भ नहीँ किया वर्तमान भदौरिया राजा अरिदमन सिँह जी नौगवां   आते रहते हैँ एवँ प्रतिवर्ष दशहरा उत्सव सम्पन्न कराने अवश्य आते हैँ दशहरा त्योहार पूर्व की ही भाँति मनाया जाता है किले के पूर्व ओर भदौरिया राजाओँ के स्मारक बने हुए हैँ सभी मूर्तियाँ सफेद चमकीले सँगमरमर से निर्मित हैँ अतः बहुत मनोहारी हैँ किला परिसर मेँ एक विशाल तोप प्राचीर के पास रखी है किला देख कर भदौरिया राजाओँ के प्राचीन बैभव का ब

हथकांत दुर्ग

महाभारत काल में हथकांत क्षेत्र को 'महत् कान्तार' (गहन-वन, अथवा दुर्गम-पथ) कहा गया हैं। हथकांत किले के चम्बल के बीहड़ो में स्थित होने के कारण सामरिक महत्व रहा है। हथकांत किला चम्बल घाटी मैं स्थित भदौरियों का विख्यात प्रधान-मुख्यालय था। हथकांत किले का निर्माण ईंटों और गारा-मिटटी से हुआ था किले में मुख्य रूप से दो प्रकार की ईंट प्रयुक्त हुई - लखुरी ईंट व कुषाड ईंट। लखुरी ईंटों का अनुपात बहुत कम था और कुषाड अवधि की ईंटों का दरियादिली से पुनः प्रयोग हुआ था। मुबारकशाह को अपने शासनकाल में (1427-1428) हथकांत के भदौरिया हिंदू शासक के विद्रोह का भी सामना करना पड़ा। जिसे उसने एक बार शांत किया तो उसके लौटते ही वह शासक पुन: स्वतंत्र होकर शासन करने लगा था। इसलिए 1429-30 ई. में मुबारकशाह को पुन: इस हिंदू शासक के दमन हेतु आना पड़ा था। पुन: भयंकर संग्राम हुआ। ‘तारीखे मुबारकशाही’ से हमें ज्ञात होता है कि हथकांत का हिंदू शासक इस युद्घ में अपनी सुरक्षार्थ जालहार की पहाडिय़ों की ओर चला गया था।   इस रियासत की कुल आबादी 29 हजार थी जहां कई दर्जन होली जलती थी और यही वो थाना था जहाँ चंबल के मशहूर डकैत प

कचौरा घाट किला

कचौरा आगरा और इटावा जिलों की सीमा पर जमना तट पर बसा हुआ है। बाह से कचौराघाट जाने वाली सड़क पर यमुना नदी के किनारे कचौराघाट स्थित है शिलालेख के आभाव मेँ इस किले के निर्माण सबँधी प्रमाणिक जानकारी का आभाव है शिलालेख के सबँध मेँ गाँव मेँ दो ही बातेँ प्रचलित हैँ कि या तो वह यमुना नदी की बाढ़ मेँ बह गया या कोई शोधकर्ता उठा ले गया।  राजा महा सिँह ने अपने चौथे कुवँर अजब सिँह जू को राव की उपाधि एवँ कचौरा का किला एवँ 15 गाँव की जागीर दी थी कालान्तर मेँ इन्हीँ के वँशज सपाड़ के राव हुए कचौराघाट का किला करीब 40 फिट की ऊँचाई पर स्थित था आज भी भग्नावशेष देखे जा सकते हैँ भदौरिया राजाओँ के द्धारा यमुना नदी के तट पर बनवाया हुआ विशाल शिव मन्दिर आज भी है कचौराघाट ब्यापारिक केन्द्र था एवँ सोने चाँदी के ब्यापार के लिये प्रसिद्ध था आज भी यहाँ खुदाई मेँ सोने के गहने बनाने के औजार व सोना दबा मिल जाता है इसी कारण इस स्थान को कँचनपुरी भी कहा जाता है आज भी यमुना नदी पर बना पक्का घाट कचौरा (कँचनपुरी) का यशोगान कर रहा है यमुना नदी के दूसरे किनारे पर नौरँगी घाट के नाम से विख्यात ग्राम है यहाँ से नावोँ द्धारा दूर दूर तक

बाह का किला

आज जहाँ बाह कस्बा है वहाँ पर रियासत काल मेँ घोर जँगल हुआ करता था जिसमेँ डाकू रहा करते थे जब भदौरिया राजा कल्यान सिँह को इसकी जानकारी मिली तो उन्होँने घेरा डाल कर  सभी डाकुओँ का सफाया कर दिया एवँ डाकुओँ के अड्डे पर बहुत धन मिला इस धन से राजा कलियान सिँह ने उस जगह का परकोटा बनवा कर उसके मध्य मेँ एक कुआ तथा सरायबनवाई इस प्रकार आज के बाह नगर की आधार शिला रखी प्रारम्भ मेँ इसका नाम कल्यान नगर रखा गया था इस जगह के उत्तर मेँ एक नाला बहता था जिसे यहाँ के निवासी ' बहा ' कहते थे इसी कारण से बाद मेँ इसका नाम बाह हो गया यहाँ की पानी की समस्या दूर करने हेतु राजा कल्यान सिँह ने इसी नाले को रोक कर एक बाँध बनवाया और उसके पूर्व मेँ एक विशाल तालाब बनवाया आज भी इसे राजा का ताल कह कर पुकारा जाता है इसी प्रकार बाह की एक गली का नाम कल्याण सागर गली है भदावरनरेश राजा कल्यान सिँह ने तालाब के चारोँ ओर इमारतेँ बनवायी तथा अपना निवास भी बनवाया एक बाग भी लगवाया व कुआ भी बनवाया यह कुआ आज भी बारहदरी कुआ कह कर पुकारा जाता है यहाँ पर धूरिकोट दुर्ग भी बनवाया गया था जो नष्ट होने से घुस्स

भिँड का किला :

भिंड किला 18वीं शताब्दी में भदावर राज्य के शासक गोपाल सिंह भदौरिया ने बनवाया था। भिण्ड किले का स्वरूप आयताकार रखा गया था , प्रवेश द्वार पश्चिम में है। इस आयताकार किले के चारों ओर एक खाई बनाई गई थी। दिल्ली से ओरछा जाने के मार्ग के मध्य मेँ होने से यह किला अत्यन्त महत्वपूर्ण था किले मेँ कई विशाल भवनोँ का निर्माण कराया गया सबसे बड़ा भवन मुख्य दरवाजे के सामने है जिसे दरबार हाल कहा जाता है उत्तर की ओर शिव मन्दिर बना है तथा प्रसिद्ध भिण्डी ऋषि का मन्दिर भी किला परिसर मेँ बना हुआ है किले मेँ अनेक तहखाने बने हुए थे किन्तु दछिणी ओर एक विशाल तलघर पर चबूतरा बना कर इसे गुप्त कर दिया गया था कहा जाता है कि यह कोषागार था वर्तमान मेँ इस चबू तरे पर एक भवन निर्मित है एवँ इसके सामने दो प्राचीन तोपेँ रखी हुई हैँ किले की उत्तर दिशा मेँ प्राचीर से सटा हुआ एक कुआ है यह कुआ किले के निवासियो को पेय जल उपलब्ध कराने हेतु बनवाया गया था । कहा जाता है कि महासिँह तथा राजा गोपाल सिँह ने सँकट के समय किले से बाहर जाने के लिये कई सुरँगो का निर्माण कराया था एक सुरँग भिण्ड किले से नबादा बाग होती हुई जवासा की गढ़ी मेँ पहु

पिनहाट का किला :

राजा चन्द्रसेन अपने पिता जैतसिंह के निधन उपरान्त राजा बने और सन 1464 से 1480 तक राज्य किया उन्होंने सन 1470 में पिनहाट के किले पर कब्जा किया और 1474 इस किले को सुढ़ृड़ किया। पिनहाट के किले से हथकांत के पश्चिमी ओर के भदावर राज्य की सुरक्षा थी।  पिनहाट  का  किला  राजा चन्द्रसेन अपने चाचा भाव सिँह के मार्गदर्शन मेँ  पिनहाट का राज्य सुढ़ृड़ करते रहे। उनके बाद राजा करन सिँह, प्रतापरुद्र, राजा मुकटमणि, राजा कृष्ण सिँह के समय तक भदावर की राजधानी यहाँ रही। महाभारत काल में  पिनहाट का नाम पाण्डव-हाट था चूँकि भाषा प्रवाह सरलता की ओर होता है अतः धीरे धीरे इसका नाम पिनहाट हो गया ।  आज यह किला खण्डहर है यहाँ बहुत से विशाल प्रस्तर स्तम्भ पड़े देखे जा सकते हैँ किले का बावन खम्भा नामक भाग सुरक्षित है जिसमेँ भदौरिया राजाओँ का दरबार लगा करता था चम्बल के बीच मेँ एक शिवजी का मन्दिर बनवाया गया था यह किले का ही भाग था व रनिवास भी किले का महत्वपूर्ण भाग था जो आज भी देखा जा सकता है अन्य इमारतेँ टूट चुकी हैँ किले का परकोटा इतना बड़ा था कि उस समय का पिनहाट नगर परकोटे के अन्दर ही बसा था किले की प्रसिद्ध जगहोँ

भदौरा का किला

   यह किला चन्द्रपाल देव के पुत्र भादूराणा ने बाह एवँ वर्तमान फतेहाबाद के मध्य गम्भीरी नदी के किनारे अपने नाम से नर्मित करा कर नगर बसाया जो भदौरागढ़ कहलाया तथा उनके वँशज भदौरिया कहलाने लगे एवँ यह राज्य भदावर राज्य के नाम से मशहूर हुआ। महाराज शल्यदेव भदौरागढ़ के संग्राम में कुतबूददीन एबक की विशाल फौज से लड़ते लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गये , लगातार आक्रमण कर आक्रान्ताओँ द्वारा यह पूर्णतः नष्ट कर दिया गया अब टीला मात्र शेष रह गया है । सन 1194 के  चन्द्रवार और भदौरागढ़ के युद्ध मेँ, हिंदू स्वतंत्रता का अस्तित्व दांव पर लगा था और ये सभी क्षेत्रों में हिंदू प्रतिरोधों का अंतिम बड़ा प्रतिरोध था इसके बाद ही 1206 में कुतुबुद्दीन ऐबक की दिल्ली के सिंहासन पर कब्जे और भारत में मुस्लिम शासन की नींव पड़ी  ।

चन्दवार किला

इस किले का निर्माण राज्य के सँस्थापक राजा चन्द्रपालदेव ने कराया था । सँवत 850 मेँ अपने नाम से   चन्दवार   नगर तथा   किला   बना कर राज्य प्रारम्भ किया । इस किले पर विभिन्न कालोँ मेँ विदेशी मुसलमान शासकोँ ने समय समय पर आक्रमण किये इस क्रम मेँ ही अलाउद्धीन खिलजी ने अपने आक्रमण से इस किले को नष्ट कर दिया था और चन्दवार नगर को भी उजाड़ दिया था पर यह पुनः भदौरियोँ के अधिकार मेँ आ गया फिर बाबर तथा शेरशाह ने अपनी तोपोँ से पुनः तबाह कर दिया गया , जो आज मात्र एक विशालकाय गुम्बद लिये भग्नावशेष के रूप मेँ है आज का फिरोजाबाद नगर प्राचीन चन्दवार नगर का ही भाग है जो काँच का सामान बनाने का दुनिया का एक बड़ा केन्द्र है। चन्दवार   जो आज  फिरोजाबाद नगर  से लगभग 5 किमी0 दक्षिण में यमुना तट पर स्थित है । पहले  फिरोजाबाद  आगरा जिले का ही परगना था बाद में तहसील बना । वर्तमान में  चन्दवार  तो एक छोटा सा गांव मात्र है  ।