आज जहाँ बाह कस्बा है वहाँ पर रियासत काल
मेँ घोर जँगल हुआ करता था जिसमेँ डाकू रहा करते थे जब भदौरिया
राजा कल्यान सिँह को इसकी जानकारी मिली तो उन्होँने घेरा डाल कर सभी डाकुओँ का सफाया कर दिया एवँ डाकुओँ के अड्डे पर
बहुत धन मिला इस धन से राजा कलियान सिँह ने उस जगह का
परकोटा बनवा कर उसके मध्य मेँ एक कुआ तथा सरायबनवाई इस
प्रकार आज के बाह नगर की आधार शिला रखी प्रारम्भ मेँ इसका नाम कल्यान नगर रखा
गया था इस
जगह के उत्तर मेँ एक नाला बहता था जिसे यहाँ के निवासी
'बहा' कहते थे इसी कारण से बाद मेँ इसका नाम बाह हो गया यहाँ
की पानी
की समस्या दूर करने हेतु राजा कल्यान सिँह ने इसी नाले को रोक कर एक बाँध
बनवाया और
उसके पूर्व मेँ एक विशाल तालाब बनवाया आज भी इसे
राजा का ताल कह कर पुकारा जाता है इसी प्रकार बाह
की एक गली का नाम कल्याण सागर गली है भदावरनरेश राजा कल्यान सिँह ने तालाब
के चारोँ
ओर इमारतेँ बनवायी तथा अपना निवास भी बनवाया एक बाग भी लगवाया व कुआ भी
बनवाया यह कुआ आज भी बारहदरी कुआ कह कर पुकारा जाता है यहाँ पर धूरिकोट
दुर्ग भी बनवाया गया था जो नष्ट होने से घुस्स कहा जाने लगा किले के पश्चिम
मेँ एक पक्का प्रवेश द्वार बनवाया गया
था जो आज भी जीर्ण शीर्ण
अवस्था मेँ है राजा कल्यान सिँह के पुत्र राजा गोपाल
सिँह ने यहाँ एक गोपाल मन्दिर बनवाया था व रख रखाव के लिये
दो गाँव मँसूरपुरा तथा ईट का नगला माफी मेँ दिये थे किन्तु
आज के समय मेँ पुजारी ठीक न होने से मन्दिर दयनीय है तथा महत्व भी
घट गया है।
भ दौरिया वंश के गोत्रचार शाखाचार इस प्रकार है वंश : अग्निवंशी राजपूत गोत्र : वत्स शाखा : राउत , मेनू , तसेला , कुल्हिया , अठभईया रियासत : चंद्रवार , भदावर , गोहद , धौलपुर ईष्ट देव : बटेश्वरनाथ (महादेव शिव) ईष्ट देवी : भद्रकाली ( भदरौली व् अमहमदाबाद) मंत्र : ॐ ग्लौं भद्रकाल्यै नमः नगाड़ा : रणजीत निसान : केसरिया वृक्ष : पीपल पक्षी : परेवा (कबूतर) वेद : श्याम तीर्थ : बटेश्वर घाट : विठूर लोकगीत : लंगुरिया , सपरी शस्त्रीय संगीत : ग्वालियर घराना