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हथकांत दुर्ग

महाभारत काल में हथकांत क्षेत्र को 'महत् कान्तार' (गहन-वन, अथवा दुर्गम-पथ) कहा गया हैं। हथकांत किले के चम्बल के बीहड़ो में स्थित होने के कारण सामरिक महत्व रहा है। हथकांत किला चम्बल घाटी मैं स्थित भदौरियों का विख्यात प्रधान-मुख्यालय था। हथकांत किले का निर्माण ईंटों और गारा-मिटटी से हुआ था किले में मुख्य रूप से दो प्रकार की ईंट प्रयुक्त हुई - लखुरी ईंट व कुषाड ईंट। लखुरी ईंटों का अनुपात बहुत कम था और कुषाड अवधि की ईंटों का दरियादिली से पुनः प्रयोग हुआ था। मुबारकशाह को अपने शासनकाल में (1427-1428) हथकांत के भदौरिया हिंदू शासक के विद्रोह का भी सामना करना पड़ा। जिसे उसने एक बार शांत किया तो उसके लौटते ही वह शासक पुन: स्वतंत्र होकर शासन करने लगा था। इसलिए 1429-30 ई. में मुबारकशाह को पुन: इस हिंदू शासक के दमन हेतु आना पड़ा था। पुन: भयंकर संग्राम हुआ। ‘तारीखे मुबारकशाही’ से हमें ज्ञात होता है कि हथकांत का हिंदू शासक इस युद्घ में अपनी सुरक्षार्थ जालहार की पहाडिय़ों की ओर चला गया था।   इस रियासत की कुल आबादी 29 हजार थी जहां कई दर्जन होली जलती थी और यही वो थाना था जहाँ चंबल के मशहूर डकैत पंचम सिंह ने सन 1909 में पूरे थाने ( 21 सिपाहियों ) की हत्या कर हथियार लुटे गए थे उसके बाद ही ये रियासत वीरान हो गयी आज भी यहाँ के खंडहरों को देख कर रियासत की सम्पन्नता का अंदाजा लगाया जा सकता है इसके बाद ही थाना जैतपुर बना था ।





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भदौरिया : गोत्रचार-शाखाचार

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भदौरिया कुटुम्ब

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