राजा चन्द्रसेन अपने पिता जैतसिंह के निधन उपरान्त राजा बने और सन 1464 से 1480 तक राज्य किया उन्होंने सन 1470 में पिनहाट के किले पर कब्जा किया और 1474 इस किले को सुढ़ृड़ किया। पिनहाट के किले से हथकांत के पश्चिमी ओर के भदावर राज्य की सुरक्षा थी।
राजा चन्द्रसेन अपने चाचा भाव सिँह के मार्गदर्शन मेँ पिनहाट का राज्य सुढ़ृड़ करते रहे। उनके बाद राजा करन सिँह, प्रतापरुद्र, राजा मुकटमणि, राजा कृष्ण सिँह के समय तक भदावर की राजधानी यहाँ रही। महाभारत काल में पिनहाट का नाम पाण्डव-हाट था चूँकि भाषा प्रवाह सरलता की ओर होता है अतः धीरे धीरे इसका नाम पिनहाट हो गया।
आज यह किला खण्डहर है यहाँ बहुत से विशाल प्रस्तर स्तम्भ पड़े देखे जा सकते हैँ किले का बावन खम्भा नामक भाग सुरक्षित है जिसमेँ भदौरिया राजाओँ का दरबार लगा करता था चम्बल के बीच मेँ एक शिवजी का मन्दिर बनवाया गया था यह किले का ही भाग था व रनिवास भी किले का महत्वपूर्ण भाग था जो आज भी देखा जा सकता है अन्य इमारतेँ टूट चुकी हैँ किले का परकोटा इतना बड़ा था कि उस समय का पिनहाट नगर परकोटे के अन्दर ही बसा था किले की प्रसिद्ध जगहोँ मेँ एक चाँदनी चौक था जो उस समय बैभवपूर्ण था पर आज बाड़ा सा प्रतीत होता है पिनहाट के समीप एक विशाल पक्का तालाब है जिसे राजा का ताल कहा जाता है इसके चारोँ ओर सुन्दर निर्माण थे जो अब खण्डहर होते जा रहे हैँ।
पिनहाट का किला |
आज यह किला खण्डहर है यहाँ बहुत से विशाल प्रस्तर स्तम्भ पड़े देखे जा सकते हैँ किले का बावन खम्भा नामक भाग सुरक्षित है जिसमेँ भदौरिया राजाओँ का दरबार लगा करता था चम्बल के बीच मेँ एक शिवजी का मन्दिर बनवाया गया था यह किले का ही भाग था व रनिवास भी किले का महत्वपूर्ण भाग था जो आज भी देखा जा सकता है अन्य इमारतेँ टूट चुकी हैँ किले का परकोटा इतना बड़ा था कि उस समय का पिनहाट नगर परकोटे के अन्दर ही बसा था किले की प्रसिद्ध जगहोँ मेँ एक चाँदनी चौक था जो उस समय बैभवपूर्ण था पर आज बाड़ा सा प्रतीत होता है पिनहाट के समीप एक विशाल पक्का तालाब है जिसे राजा का ताल कहा जाता है इसके चारोँ ओर सुन्दर निर्माण थे जो अब खण्डहर होते जा रहे हैँ।