कचौरा आगरा और इटावा जिलों की सीमा पर जमना तट पर बसा हुआ है। बाह से कचौराघाट जाने वाली सड़क पर यमुना नदी के किनारे कचौराघाट स्थित है शिलालेख के आभाव मेँ इस किले के निर्माण सबँधी प्रमाणिक जानकारी का आभाव है शिलालेख के सबँध मेँ गाँव मेँ दो ही बातेँ प्रचलित हैँ कि या तो वह यमुना नदी की बाढ़ मेँ बह गया या कोई शोधकर्ता उठा ले गया।
राजा महा सिँह ने अपने चौथे कुवँर अजब सिँह जू को राव की उपाधि एवँ कचौरा का किला एवँ 15 गाँव की जागीर दी थी कालान्तर मेँ इन्हीँ के वँशज सपाड़ के राव हुए कचौराघाट का किला करीब 40 फिट की ऊँचाई पर स्थित था आज भी भग्नावशेष देखे जा सकते हैँ भदौरिया राजाओँ के द्धारा यमुना नदी के तट पर बनवाया हुआ विशाल शिव मन्दिर आज भी है कचौराघाट ब्यापारिक केन्द्र था एवँ सोने चाँदी के ब्यापार के लिये प्रसिद्ध था आज भी यहाँ खुदाई मेँ सोने के गहने बनाने के औजार व सोना दबा मिल जाता है इसी कारण इस स्थान को कँचनपुरी भी कहा जाता है आज भी यमुना नदी पर बना पक्का घाट कचौरा (कँचनपुरी) का यशोगान कर रहा है यमुना नदी के दूसरे किनारे पर नौरँगी घाट के नाम से विख्यात ग्राम है यहाँ से नावोँ द्धारा दूर दूर तक का ब्यापार किया जाता था नौरँगी घाट इतिहास प्रसिद्ध स्थान है यहाँ से कई राजाओँ तथा नवाबोँ की सेनायेँ युद्ध के लिये नदी पार करती थीँ यह नौरँगी घाट आज भी आगरा जिले का प्रमुख स्थान है।
कचौरा : शिवमयं एक गांव जहाँ अधकच्चे घी की मंडी थी
कचौराघाट पुर्ववत कंचनपुरी पवित्र नदी यमुना किनारे बसा हुआ प्राचीन नगर है | यहाँ हिंदू धर्म के पुज्य देवी देवताओ के अनेक प्राचीन मंदिर है जो यहा की शोभा को बढाते है | शाम को सूर्यास्त के समय यहा की छवि दर्शनीय है | इस दर्शनीय छवि को निहारने के लिये दर्शक शाम को यमुना नदी पर बने पुल पर एकत्रित होते है | यहा से इस नगर की छवि और रमनीक दिखाई देती है | यहाँ पर एक विशाल किला भी है जो इस नगर की शोभा मे चार चांद लगाता है | यहा हर समय कोई न कोई धार्मिक कार्य होता रहता है |
कचौराघाट गांव, प्राचीन काल में बडा व्यापारिक केन्द्र था यहाँ बिना पूर्ण पकाये अधकच्चे घी की मंडी थी, इसी कारण इस ग्राम का नाम कचौरा पड़ा था। ये घाट सोने चाँदी के ब्यापार के लिये भी प्रसिद्ध था आज भी यहाँ खुदाई मेँ सोने के गहने बनाने के औजार व सोना दबा मिल जाता है इसका प्राचीन नाम कँचनपुरी था। गाँव कचौरा घाट पर बड़े विश्रान्त मंदिर पर शिवरात्रि के पावन अवसर पर रुद्राभिषेक एवम रामायण पाठ किया जाता है। इसी तरह छोटे विश्रान्त मंदिर पर तीन दिन के मेले का आयोजन किया जाता है। शिवरात्रि के पावन अवसर पर भोलेनाथ पर कांवड़ चढ़ाई जाती हैं।